Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 380
________________ * गीता दर्शन भाग-7* रुचिकर लगे, वह कर लेना। अज्ञेय है, वह धर्म की विशिष्ट कोटि है। अज्ञात ज्ञात हो जाएगा; इस भेद को खयाल में ले लें। ज्ञात फिर अज्ञात हो सकता है। क्योंकि बहत-से सत्य आदमी को आसुरी संपदा वाला व्यक्ति कहता है, जो सुखपूर्ण मालूम पड़े, ज्ञात हो गए, फिर खो गए। वह कर लेना, झूठ तो सभी कुछ है। दैवी संपदा वाला व्यक्ति अभी काबुल के करीब कोई पंद्रह वर्ष पहले एक छोटा-सा यंत्र कहता है कि सुख-दुख की फिक्र मत करना; जो सत्य हो, उसकी | मिला। समझना ही मुश्किल हुआ कि वह यंत्र क्या है। बहुत फिक्र करना: जो असत्य हो. उसको छोडना। खोजबीन करने पर पता चला कि वह विद्यत पैदा करने की बैटरी दैवी संपदा वाले के लिए सत्य कसौटी है। आसुरी संपदा वाले | है, और कोई पांच हजार वर्ष पुराना है। पांच हजार वर्ष पहले विद्युत के लिए सुख कसौटी है। झूठ तो सभी है, इसलिए यह तो कोई | पैदा करने का उपाय किन्हीं ने खोज लिया था; वह ज्ञात हो गया उपाय ही नहीं है इसमें तौलने का कि कौन सा सच है, कौन सा झूठ था; फिर वह खो गया। है। एक ही उपाय है कि जिससे सुख मिलता हो। कुछ तीस वर्ष पहले पेरिस की एक लाइब्रेरी में सात सौ वर्ष नास्तिकों ने सदा एक दलील दी है, आस्तिक भी उस दलील का | पुराने पृथ्वी के नक्शे मिले। उन नक्शों में पृथ्वी गोल बताई गई है, उपयोग करते हैं; पर दोनों के प्रयोजन बड़े भिन्न हैं। आस्तिक कहता और उन नक्शों में अमेरिका भी अंकित है। तो यह खयाल गलत है, यह कहां तुम दौड़ रहे हो स्त्री के पीछे, धन के पीछे, | है कि कोलंबस ने अमेरिका खोजा। कोलंबस से बहुत साल पहले पद-प्रतिष्ठा के पीछे; ये सब झूठ हैं। नास्तिक भी कहता है कि ये अमेरिका नक्शे पर अंकित है। सब झूठ हैं। लेकिन कहीं और दौड़ने को कोई जगह भी नहीं है। न केवल यही, बल्कि वह जो नक्शा मिला है सात सौ वर्ष पुराना, इस झूठ को भी छोड़ दें, तो कोई सत्य तो है नहीं, जिसको हम पकड़ | वह और भी अनूठा है। वह ऐसा है कि बिना हवाई जहाज के वह लें। झूठ को हम खो सकते हैं, लेकिन सत्य को पा नहीं बन ही नहीं सकता। जब तक बहुत ऊंचाई से पृथ्वी न देखी जाए, सकते-नास्तिक की दृष्टि में। तब तक पृथ्वी का वैसा नक्शा बनाने का कोई उपाय ही नहीं है। इसलिए खोने का भी क्या अर्थ है? सपना भी अगर मधुर देखा तो न केवल वह नक्शा सिद्ध करता है कि अमेरिका पहले खोजा जा सकता है, तो देख लेना चाहिए। सिर्फ सपना होने से ही छोड़ने | | जा चुका था, फिर खो गया; वह यह भी सिद्ध करता है कि मनुष्य योग्य नहीं है। क्योंकि सत्य अगर कहीं होता, तो हम सपने को छोड़ के पास वायुयान थे। तभी वह नक्शा बन सकता है। उसके बनने भी देते। लेकिन सत्य कहीं है ही नहीं। इसलिए दो तरह के सपने हैं. का कोई और रास्ता ही नहीं है। और वह नक्शा नब्बे प्रतिशत वैसा सुखद और दुखद। जो सुखद सपनों को खोज लेता है, वह होशियार ही है, जैसा हम आज बनाते हैं। उसमें जरा-सा ही भेद है। है। जो दुखद सपनों में पड़ा रहता है, वह नासमझ है। और सपने के | तो पहले तो यह खयाल था कि भेद भूल-चूक की वजह से हो अतिरिक्त कोई सत्य नहीं है। यह आसुरी संपदा वाले की वृत्ति है। गए होंगे। कुछ वैज्ञानिकों की धारणा है कि हो सकता है कि पृथ्वी विज्ञान निश्चित ही आसुरी संपदा वाले से राजी है। दोनों कारणों | ___ में, जब वह नक्शा बनाया गया-क्योंकि सात सौ साल पहले से राजी है। एक तो इस कारण राजी है कि जगत में कोई रहस्य नहीं | जिसने बनाया, उसने उस पर नोट लिखा है कि वह किसी पुराने है; जगत में कोई छिपा हुआ राज नहीं है। जगत एक खुली किताब | नक्शे की नकल कर रहा है तो इस बात की संभावना ज्यादा है है। और अगर हम न पढ़ पाते हों, तो उसका केवल इतना ही अर्थ | कि पृथ्वी में फर्क हो गए हैं, जब वह नक्शा बना होगा। इसलिए है कि हमें पढ़ने की कुशलता और बढ़ानी चाहिए। थोड़े से भेद हैं। लेकिन इतना तो बिलकुल ही स्पष्ट है कि वह बिना विज्ञान जगत को दो हिस्सों में तोड़ता है, नोन और अननोन, | हवाई जहाज के, पृथ्वी का चक्कर न लगाया गया हो, तो उस नक्शे ज्ञात और अज्ञात। वह जो अज्ञात है, वह कल ज्ञात हो जाएगा; जो को बनाया ही नहीं जा सकता। आज ज्ञात है, वह भी कल अज्ञात था। एक दिन ऐसा आएगा, जब | हिंदू तो बहुत समय से सोचते रहे हैं कि उनके पास पुष्पक सब ज्ञात हो जाएगा; अज्ञात की कोटि नष्ट हो जाएगी। | विमान थे। और दुनिया की हर जाति के पास आकाश में उड़ने की ___धर्म जगत को तीन हिस्सों में तोड़ता है, ज्ञात, अज्ञात और | | कथाएं हैं। अज्ञेय-नोन, अननोन और अननोएबल। वह जो अननोएबल है, जो ज्ञात है, वह अज्ञात हो जाता है; जो अज्ञात है, वह ज्ञात होता | 352|

Loading...

Page Navigation
1 ... 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450