Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 363
________________ * आसुरी व्यक्ति की रुग्णताएं * करने का खयाल हो! | है, न रहस्य होता है, न गहराई होती है, न ऊंचाई होती है। जीवन का जो विकास है, वह आंतरिक संयम से संभव होता है। उपन्यासकार कहते हैं कि साधारण अच्छे आदमी के जीवन पर आप एक सपाट जमीन पर चलते हैं। तो कोई भीड़ आपको देखने कोई कहानी नहीं लिखी जा सकती। अच्छे आदमी की कोई कहानी इकट्ठी नहीं होती, न ही लोग ढोल बजाकर आपका स्वागत करते होती ही नहीं। कहानी के लिए बरा आदमी चाहिए। और हैं, न तालियां पीटते हैं। लेकिन आप दो छतों के बीच में एक रस्सी | गहरी हो जाती है, अगर बुरा आदमी बुराई को पार करके अच्छाई बांधे, फिर उस रस्सी पर चलें, तो सारा गांव इकट्ठा हो जाएगा। | | में उतर जाए। तब कहानी बड़ी रहस्यपूर्ण हो जाती है; और कहानी चलने में कोई भी फर्क नहीं है। जैसा आप जमीन पर चलते थे, | में एक स्वाद आ जाता है, एक चुनौती, एक उत्तुंग ऊंचाई, एक उन्हीं पैरों से, उसी ढंग से रस्सी पर भी चलेंगे। लेकिन यह भीड़ पुकार दूर की। देखने इकट्ठी किसलिए हो गई? क्योंकि अब गिरने की संभावना ___ पापी के जीवन में कथा होती है। और अगर पापी संत हो जाए, है। आप गिर सकते हैं। चलना कठिन है, गिरना आसान है। और | | तो उससे ज्यादा जटिल और रहस्यपूर्ण कथा फिर किसी के जीवन गिरने की जो यह संभावना है कि हड्डी-पसली टूट जाए, कि जीवन | | में नहीं होती। भी समाप्त हो जाए, इस खतरे को लेकर आप जब रस्सी पर चलते ___ थामसमन ने एक अदभुत किताब लिखी है। किताब का नाम है, हैं, तो इस चलने में गौरव और गरिमा आ जाती है। दि होली सिनर, पवित्र पापी। मनुष्य चौबीस घंटे रस्सी पर है, पशु सदा समतल भूमि पर है। तो जहां पवित्रता और पाप दोनों घट जाते हैं, उस तनाव में, सभ्यता की खूबी यही है कि वह आपको मौका देती है, गिरने का रस्सी जैसे दो खाइयों के बीच खिंच जाती है, और उस रस्सी पर भी, उठने का भी। तो आदिवासी भले हैं, लेकिन कोई बुद्ध तो जो संतुलन को साध पाता है, वह गौरव के योग्य है। सभ्यता आदिवासी पैदा नहीं कर पाते। कोई रावण भी पैदा नहीं होता, कोई | | सुविधा देती है गिरने की; सभ्यता सुविधा देती है उठने की। राम भी पैदा नहीं होता। दोनों का उपाय नहीं है। नहीं, आदिवासीपन वरेण्य नहीं है, वरेण्य तो सभ्यता ही है। सभ्यता सुविधा है, नरक और स्वर्ग दोनों तरफ जाने की। जितना | लेकिन सभ्यता विकल्प देती है। सभ्यता वरेण्य है, और फिर सभ्य समाज हो, उतनी सुविधा बढ़ती जाती है। यह दूसरी बात है | सभ्यता के विकल्पों में स्वर्ग की तरफ जाने की यात्रा वरेण्य है। कि आप सुविधा का उपयोग नरक जाने के लिए ही करते हैं। यह अगर आप साधारण भले आदमी हैं, तो आप यह मत समझना आपका निर्णय है। | कि जीवन आपकी कोई उपलब्धि बन रहा है। आप कुनकुनेपर शायद स्वर्ग जाने के लिए नरक जाना भी जरूरी है। नरक कुनकुने जी रहे हैं। जीवन में कोई अति नहीं है। और अति न होगी, की पीड़ा का अनुभव न हो, तो स्वर्ग के आनंद का भी स्मरण नहीं तो जीवन में कोई आनंद की पुलक, कोई इक्सटैसी, कोई समाधि आता। नरक की अंधेरी पृष्ठभूमि में ही स्वर्ग की शुभ्र रेखाएं की दशा भी पैदा नहीं होगी। खिंचती हैं, उभरती हैं और दिखाई पड़ती हैं। वह जो पीड़ा को नीत्से ने एक बहुत महत्वपूर्ण वचन लिखा है। उसने लिखा है, भोगता है, उसे आनंद की खोज भी पैदा होती है। | जिस वृक्ष को आकाश की ऊंचाई छूनी हो, उसे अपनी जड़ें पाताल इसलिए जिनको हम साधारणतः भले आदमी कहते हैं, उनके | की गहराई तक भेजनी पड़ती हैं। अगर वृक्ष डरता हो कि अंधेरी जीवन में कुछ नमक नहीं होता; उनके जीवन में कुछ स्वाद नहीं | जमीन में कहां जड़ों को भेजूं, तो फिर उसकी शाखाएं भी आकाश होता। स्वादं तो उस आदमी के जीवन में होता है, जिसने बुरा होना | | में न जा सकेंगी। जितनी ऊंचाई वृक्ष की ऊपर होती है, उतनी नीचाई भी जाना है, और फिर भला होना भी जाना है। उसके जीवन में एक | वृक्ष की नीचे होती है; समान होता है। जड़ें उतनी ही गहरी जानी संगीत होता है, एक गहराई होती है, एक ऊंचाई होती है। | जरूरी हैं, जितना वृक्ष को ऊपर उठना हो। जो वृक्ष चार-चार सौ साधारणतः कोई आदमी भला है, न उसने कभी कुछ बुरा किया | | फीट ऊपर उठते हैं आकाश को छूने की आकांक्षा से, वे चार सौ है, न कभी कोई पाप किया है, न कभी अपराध में उतरा है, न कभी | फीट नीचे जमीन में अपनी जड़ों को भी भेजते हैं। भटका है रास्ते से, उस आदमी के जीवन में बहुत संगीत नहीं होता। यही नियम मनुष्य का भी है। जितने दूर तक गिरने का रास्ता है, इकहरा स्वर होता है। उसमें न रस होता उतने ही दूर तक उठने का उपाय है। गिरने के रास्ता का यह अर्थ 335

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