Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 332
________________ * गीता दर्शन भाग-7 * उपद्रव इतनी देर शांत रहे होते हैं, साधु क्षण होता है। भिखमंगे | थोड़ा-सा खोजेंगे, तो पाएंगे, उसमें रस है। सुबह भीख इसीलिए मांगने आते हैं। सांझ को कोई उन्हें भीख देने __ किसी के मकान में आग लग गई है, तब आप अपना स्वाध्याय वाला नहीं है। सुबह साधु क्षण को फुसलाया जा सकता है। । | करना। जब आप जाकर उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं कि सबह-सबह एक आदमी उठा है. उसके सामने कोई भीख बहत बरा हआ. ऐसा नहीं होना चाहिए. तब अपना आप निरीक्षण मांगता है, तो इनकार करना मुश्किल है। सांझ एक आदमी दिनभर | | करना कि भीतर कोई रस तो नहीं आ रहा है कि अपना मकान नहीं दुकान में बेईमानी करके लौटा है। उससे दया पाने की आशा करनी | | जला, दूसरे का जला! भीतर कोई रस तो नहीं आ रहा है कि हम कठिन है। सहानुभूति बताने की स्थिति में हैं और तुम सहानुभूति लेने की स्थिति आपके भी क्षण होते हैं। दिन में आप कई बार साधु और कई | | में हो! कि अच्छा मौका मिला कि आज हमारा हाथ ऊपर है! बार असाधु होते हैं। और यह रूपांतर चलता रहता है। इस द्वंद्व के __ और वह आदमी अगर आपकी सहानुभूति न ले, तो आपको बाहर जाने का एक ही उपाय है कि हम दोनों में चुनना बंद कर दें। | पता चल जाएगा। वह कह दे, कुछ हर्जा नहीं, बड़ा ही अच्छा हुआ ___ संतत्व अस्तित्व है; साधुता, असाधुता माया है। संतत्व से कोई | | कि मकान जल गया; सर्दी के दिन थे, और ताप मिल रहा है; बड़ा पीछे नहीं गिरता। क्योंकि जिसका साक्षी सध गया. उसके पीछे कछ आनंद आ रहा है। तो आप दखी घर लौटेंगे. क्योंकि उस आदमी बचता ही नहीं, जहां गिर सके। द्वंद्व खो गया; स्वप्न टूट गया। वह ने आपको मौका नहीं दिया ऊपर चढ़ने का। एक मुफ्त अवसर जो षड्यंत्र था द्वैत का, वह शेष न रहा। गिरने की कोई जगह नहीं | मिला था, जहां आप दान कर लेते बिना कुछ दिए; जहां बिना कुछ है। संत को गिरने की कोई जगह नहीं है। कुछ बचा नहीं, जहां वह | बांटे आप सहानुभूति का सुख ले लेते, वह मौका उस आदमी ने गिर सके। नहीं दिया। आप उस आदमी के दुश्मन होकर घर लौटेंगे। साधु गिर सकता है, इसलिए साधुता कोई बड़ी उपलब्धि नहीं ध्यान रहे, अगर आप किसी को सहानुभूति दें और वह आपकी है। खेल से ज्यादा नहीं है। संतत्व उपलब्धि है, लेकिन बड़ी दूभर | | सहानुभूति न ले, तो आप सदा के लिए उसके दुश्मन हो जाएंगे, है। क्योंकि पहली ही शर्त, चुनना नहीं। पहली ही शर्त, ज्ञान में | आप उसको कभी माफ न कर सकेंगे। ठहरना, जागरूकता में रुकना। पहली ही शर्त, साक्षी हो जाना। इसको पहचानना हो, तो दूसरे छोर से पहचानना आसान है। अब हम सूत्र को लें। सभी को लगता है कि नहीं, यह बात ठीक नहीं। दूसरे के दुख में दैवी संपदायुक्त पुरुष के अन्य लक्षण हैं: अहिंसा, सत्य, | हमें दुख होता है। इसे छोड़कर दूसरे छोर से पहचानें, दूसरे के सुख अक्रोध, त्याग, शांति और किसी की भी निंदादि न करना तथा सब में क्या आपको सुख होता है? भूत प्राणियों में दया, अलोलुपता, कोमलता तथा लोक और शास्त्र | अगर दूसरे के सुख में सुख होता हो, तो ही दूसरे के दुख में दुख के विरुद्ध आचरण में लज्जा, व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव तथा तेज, | | हो सकता है। और अगर दूसरे के सुख में पीड़ा होती है, तो गणित क्षमा, धैर्य और शौच अर्थात बाहर-भीतर की शुद्धि एवं अद्रोह साफ है कि दूसरे के दुख में आपको सुख होगा, पीड़ा नहीं हो अर्थात किसी में भी शत्र-भाव का न होना और अपने में पज्यता के | सकती। अगर दूसरे का सुख देखकर आप जलते हैं, तो दूसरे का अभिमान का अभाव-ये सब तो, हे अर्जुन, दैवी संपदा को प्राप्त दुख देखकर आप प्रफुल्लित होते होंगे। चाहे आपको भी पता न हुए पुरुष के लक्षण हैं। चलता हो, चाहे आप अपने को भी धोखा दे लेते हों. लेकिन भीतर एक-एक लक्षण को समझें। आपको मजा आता होगा। अहिंसा...। अखबार सुबह से उठाकर आप देखते हैं। अगर कोई उपद्रव न अहिंसा का अर्थ है, दूसरे को दुख पहुंचाने की वृत्ति का त्याग। छपा हो, कहीं कोई हत्या न हुई हो, गोली न चली हो, तो आप थोड़ी हम सबको दूसरे को दुख पहुंचाने में रस आता है। दूसरे को दुखी | | देर में उसको ऐसा उदास पटक देते हैं। कहते हैं, कुछ भी नहीं है, कोई देखकर हममें सुख का जन्म होता है। यह जरा कठिन लगेगा, | | खबर ही नहीं! आप किस चीज की तलाश में हैं? आप कहीं दुख क्योंकि हम कहेंगे, नहीं, ऐसा नहीं। दूसरे में दुख देखकर हममें खोज रहे हैं, तो आपको लगता है, यह समाचार है, कुछ खबर है। सहानुभूति जन्मती है। लेकिन अगर आप अपनी सहानुभूति को भी जब भी आप दुखी आदमी को देखते हैं, तो तुलनात्मक रूप से 304

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