Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 333
________________ * दैवीय लक्षण * आप अनुभव करते हैं कि आप सुखी हैं। और न केवल साधारणजन, | | है। बोधपूर्वक अहिंसा के सार-तत्व को पकड़ने की बात है। बल्कि नैतिक शिक्षक लोगों को समझाते हैं कि अगर तुम्हारा एक पैर | | मैं रोज देखता हूं, तो बड़ा जीवन विरोधों से भरा हुआ मालूम टूट गया है, तो दुखी मत होओ। देखो, ऐसे लोग भी हैं, जिनके दो | | पड़ता है। पैर टूटे हुए हैं। उनको देखो! तो निश्चित ही अगर आपका एक पैर | | एक क्वेकर साधु पुरुष था। क्वेकर ईसाइयों का एक संप्रदाय है, टूट गया है, तो दो पैर टूटे आदमी को देखकर आपके जीवन में | | जो अहिंसा में पक्का भरोसा करता है। जैनों जैसा संप्रदाय है अकड़ आ जाएगी। आपको लगेगा कि कुछ हर्जा नहीं, ऐसा कुछ | ईसाइयों का। किसी को मारना नहीं। तो क्वेकर अपने हाथ में बंदूक ज्यादा नहीं बिगड़ गया है; दुनिया में और भी बुरी हालतें हैं। या अस्त्र-शस्त्र भी नहीं रखते, अपने घर में भी नहीं रखते। लेकिन नैतिक शिक्षक लोगों को समझाते हैं कि अपने से पीछे देखो; यह क्वेकर्स की मान्यता है कि जब किसी को मरना है, किसी की अपने से ज्यादा दुखी को देखो, तो तुम हमेशा सुखी अनुभव घड़ी आ गई, तो परमात्मा उसे खुद उठा लेगा, किसी को उसे मारने करोगे। अपने से सुखी को देखोगे, तो हमेशा दुखी अनुभव करोगे। की जरूरत नहीं है। अगर अपनी घड़ी मरने की आ गई, तो परमात्मा ___ पर यह बात ही बुरी है। इसका मतलब हुआ कि दूसरे को दुखी | हमें उठा लेगा। तो अस्त्र-शस्त्र का क्या प्रयोजन है! देखकर आपको कुछ सुख मिल रहा है। यह कोई बड़ी नैतिक शिक्षा लेकिन यह साधु पुरुष जब भी चर्च जाता-चर्च दूर था इसके न हुई। और यह कोई भला संदेश न हुआ। गांव से—तो वह एक पिस्तौल लेकर जाता। और वह जाहिर कृष्ण कहते हैं, दैवी संपदायुक्त व्यक्ति का लक्षण होगा अहिंसा।। अहिंसक था। तो मित्रों ने पूछा कि तुम भाग्य को मानते हो, अहिंसा अहिंसा का अर्थ है, दूसरे को दुख न पहुंचाने की वृत्ति। और यह को मानते हो, तुम किसी को मारना भी नहीं चाहते, तुम यह भी तभी हो सकता है, जब दूसरे के दुख में हमें सुख न हो। और यह | जानते हो कि जब तक परमात्मा की मरजी न हो, तब तक तुम्हें कोई तभी होगा, जब दूसरे के सुख में हमें सुख की थोड़ी-सी भाव-दशा | | मार नहीं सकता, तो तुम पिस्तौल लेकर किसलिए जा रहे हो? बनने लगे। उस क्वेकर ने क्या कहा! उसने कहा कि मैं अपने बचाव के लिए तो अहिंसा कहां से शुरू करिएगा? पानी छानकर पीजिएगा, तो पिस्तौल लेकर नहीं जा रहा हूं। लेकिन इस पिस्तौल से अगर अहिंसा शुरू होगी? मांसाहार छोड़ने से अहिंसा शुरू होगी? ये | | परमात्मा को किसी को मारना हो, तो यह मौजूद रहनी चाहिए। सब गौण बातें हैं। छोड़ दें तो अच्छा है, लेकिन उतने से अहिंसा अगर मेरा उपयोग करना हो परमात्मा को...। शुरू नहीं होती। इस क्वेकर के घर में एक रात एक चोर घुस गया, तो उसने अहिंसा शुरू होती है, जब कोई सुखी हो, तो वहां सुख अनुभव | अपनी पिस्तौल उठा ली। चोर एक कोने में दबा हुआ खड़ा है। उस करें। दूसरे के सुख को अपना उत्सव बनाएं। और जब कोई दुखी | | कोने की तरफ धीमा-सा प्रकाश है; रात का नीला प्रकाश होता हो, तो दुख अनुभव करें; और दूसरे के दुख में समानुभूति में थोड़ा-सा, पांच कैंडल का बल्ब है। वह कोने में छिप उतरें। दूसरे की जगह अपने को रखें, चाहे सुख हो, चाहे दुख। इसने कोने की तरफ पिस्तौल की और कहा कि मित्र, तुम्हें मैं नहीं दूसरे की जगह स्वयं को रखने की कला अहिंसा है। कोई सुखी | | मार रहा हूं; लेकिन जहां मैं गोली चला रहा हूं, तुम वहीं खड़े हो! है, तो उसकी जगह अपने को रखें, और उसके सुख को अनुभव | __ लेकिन यह हमें हंसी योग्य बात लगती है, लेकिन सारी दुनिया करें, और प्रफुल्लित हो जाएं। कोई दुखी है, तो उसकी जगह अपने | | के अहिंसक इसी तरह के तर्क...। क्योंकि हिंसा तो बदलती नहीं, को रखें, और उसके दुख में लीन हो जाएं, जैसे वह दुख आप पर | ऊपर से आचरण थोप लिया जाता है! ही टूटा हो। तब आप पाएंगे कि जीवन में अहिंसा आनी शुरू हुई। क्वेकर पक्के अहिंसक हैं। दूध भी नहीं पीते। कहते हैं, दूध खून ___ पानी छानकर पीना और मांसाहार छूट जाना बड़ी सरल बातें हैं, | है, आधा खून है, इसलिए पाप है। दूध से बनी कोई चीज नहीं लेते। जो इस भाव-दशा के बाद अपने आप घट जाएंगी। लेकिन कोई क्योंकि वह एनिमल फुड है। कितना ही पानी छानकर पीए, सात बार छानकर पीए, तो भी अहिंसा । ये जो सोचने के ढंग हैं, इनमें से तरकीबें निकल आती हैं। अंडा नहीं होने वाली। मांसाहार बिलकुल न करे, तो भी अहिंसा होने वाली खाते हैं, क्वेकर अंडा खाते हैं। क्योंकि वे कहते हैं, अंडा, जब तक नहीं। ये सिर्फ आदतें हो जाती हैं। आदतों का कोई बड़ा मूल्य नहीं बच्चा उसके बाहर नहीं आ गया, तब तक उसमें कोई जीवन नहीं पा खडा है। 305

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