Book Title: Gautam Pruccha Vrutti
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
गौतम- त्यवादो प्रोक्तोऽसि, अतोऽहं ते मिथ्यापुष्कृतं ददामि. मया यदा तहिषये स्वामी पृष्टस्तदा पहावृण
Yo तेनोक्तं यदानेदेनोक्तं तत्सर्वमपि स पश्यति, अपानंदोऽनशनं विधाय समाधिना स्वायुः पूर ॥१५॥ीकृत्य सौधर्मदेवलोकेऽरुणानविमाने देवो जातः॥ इति श्रीखरतर प्रानंदस्य कयास
माता ॥ इति हितीयः प्रश्नः ॥ अय तृतीयचतुर्थप्रभोत्तरमाह
--कजळ जो सेव । मिने कजे कए वि संचय ॥ कूरो गूढमश्च । तिरिन सो होइ मरिकगं ॥ १५ ॥ व्याख्या-पः पुमान् आत्मनोऽ मित्रं सेवते, कार्य सूते सति च मित्रं संत्यजति, उपलकणान्मित्रं दुःखयति, मित्रस्य चाऽशुनं वदति, पुनर्यः पुमान क्रूरो नवति, तया यो गूढमतिरादात्मनो गुह्यं मित्रस्याग्रेन प्रकाशयति, स पुमान् मृत्वा तियग्नवति, तिर्यक्तूत्पद्यते, यथाऽशोकदनकुमासे मित्रशेनं मायां च कृत्वा विमलवाहनस्य कु. लगुरोईस्ती जातः ॥ १७ ॥ तना- माय-अजवमहवजुनो। अकोहणो दोसवजि ॥१५॥
दाई ॥ नयसाहुगुणेसु ठिन । मरिचं सो माणुसो होश ॥ २० ॥ व्याख्या-यः पुमान - सरलचिनो नवति, पुनर्निरदकारी जवति, पुनरक्रोधो नवति, पुनर्दोषवर्जितो नवति, पुनर्यः
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143