Book Title: Gautam Pruccha Vrutti
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गौतम ॥ ४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कदाचिदपि नरकनिबंधनरूपां जीवहिंसां न करिष्यामि, एवमुक्त्वा स गृहान्निर्गतः, एवं कियत्कालं यावत्तत्रियमं प्रपाब्य ततो मृत्वाऽयं त्वं दामनको जातः, मत्स्यपकत्रोटनकर्मोंass कांगुलिका खुटिता, एवं गुरुभ्यो निजपूर्वजवं श्रुत्वा सुनंदः संवेगतोऽनशनं विधाय समाधिना च स्वायुः प्रपाब्य मृत्वा सुरवरो बज्जूत्र, ततश्च्युत्वा मर्त्यजवं प्राप्य "जैनीं दीक्षां च प्रपद्य क्रमात्स मोकं यास्यति ॥ इति जीवदयादानविषये दामनककथा संपूii. || अथ दशमैकादशप्रश्नोत्तरमाद गाथा - देश न निययं सम्मं । दिन पि निवारए दिनं । एएहिं कम्मेहिं । जोगेदिं विहो || २६ ॥ व्याख्या -- यः पुरुष ग्रात्मनो वस्तु कस्मैचिन्न ददाति, पुनः कस्मैचितं वस्तु पश्चाति, पुनरन्येन्यो दानदायका निवारयति, इद्दशेन कर्मणा जीवो जोगरदितो जवति, धनसारवत् ॥ २६ ॥ माथा - सयणासाव वा । जतं पत्तं च पाणयं वावि ॥ दीयेण देव तुट्टो । गोयम जोगी नरो होइ ॥ २७ ॥ व्याख्या -- यः पुरुषः शयनास नवस्त्राणि पट्टिकासंस्तारकपादपुंबन कंबलादीनि, पुनर्जतं पात्र पानीयं च साधुभ्यो हृदये द For Private And Personal पृचावृण ॥ ४० ॥

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