Book Title: Gau Vansh par Adharit Swadeshi Krushi
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan
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लिया। जब तक भारत को पूर्ण स्वदेशी, पूर्ण स्वावलंबी और स्वाभिमानी नहीं बना लेंगे तब तक चैन की सांस नहीं लेनी है, बहुत सारे लोगों ने कहा कि राजीव भाई दुबारा से आयेंगे इस अधूरी लड़ाई को पूरा करने के लिए। यदि ऐसा होता भी है तो भी जब तक वे आयें तब तक इसको जिन्दा रखना और चलाये रखने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली है। स्वामी जी का तो आशीर्वाद है ही, और राजीव भाई के मानने वाले, चाहने वालों का आशीर्वाद भी रहेगा ही।
करीब 5-6 बजे के आसपास हरिद्वार आ गया, वहाँ आचार्य बालकृष्ण जी राजीव भाई को लेने आये थे। राजीव भाई को लेकर सीधे भारत स्वाभिमान के कार्यालय में गये। वहाँ राजीव भाई के अंतिम दर्शन करने वालों का तांता लगना शुरू हो गया। राजीव भाई अमर रहे के नारों के साथ उनका पर्थिव शरीर,श्रद्धालयम के उसी विशाल हॉल में रखा गया जहाँ उन्होंने अपने ऐतिहासिक व्याख्यान दिये थे। सामने वही मंच था। जहाँ राजीव भाई ने स्वामी जी के सनिध्य में देश के नौजवानों को ललकारा था और उनकी आवाज पर सैकड़ों जीवन दानी अपना सबकुछ छोड़कर 'भारत स्वाभिमान की इस लड़ाई में कूदे थे। उनमें से काफी जीवनदानी भाई वहाँ थे। वेसभी हतप्रभ थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। क्या करें। राजीव भाई को बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया गया, उनको गर्मी बहुत लगती थी इसलिए शायद अपने अंतिम समय में वे बर्फ पर लेटे थे। तब तक माँ-पिताजी भी आ गये। उनको अभी तक नहीं बताया गया था कि राजीव भाई नहीं रहे। हरिद्वार में हॉल में प्रवेश से पहले ही उन्हें बताया, हॉल में प्रवेश करते ही पिताजी ने विलाप करते हुए पूछा कि भैया को कहाँ छोड़ आये, मैं क्या जवाब देता, मेरे पास कोई उत्तर नहीं था, एक बाप अपने बेटे के अंतिम दर्शन के लिए आया था, वह बेटा जिसने देश सेवा का व्रतलेकर भारत माँ को विदेशी कंपनियों से मुक्त कराने और खुशहाल भारत बनाने की लड़ाई छेड़ी थी, उसके अंतिम दर्शन के लिए आये थे। माँ बार-बार राजीव भाई के चेहरे को प्यार से छू-छूकर बोल रही थी कि आज ही तेरा जन्मदिन था। एक बार तो उठ जा लेकिन राजीव भाई तो शांत सो रहे थे। स्वामी जी ने सभी को ढांढस बंधाया और कहा कि हम सब आपके बेटे हैं। आप तो हजार बेटे वाली माँ हो । दूर-दूर से सभी साथियों का आना जारी था। पुराने-पुराने साथी आ रहे थे अंतिम दर्शन के लिए। रात भर यह सब चलता रहा।
सुबह 8 बजे कनखल के घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाने की तैयारी शुरू हो गई। अंतिम संस्कार के लिए ठाठारी पर लिटाने से पूर्व राजीव भाई को स्नान कराया गया। सभी प्रेमी साथियों ने अपने-अपने हाथों से निहलाया, घी स्वदेशी कृषि
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