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(3) इन बिलों द्वारा पानी का संग्रह भूगर्भ में होने से आवश्यकतानुसार फसल
को वह अनायास प्राप्त होता है और सिंचाई में बचत होती है। भूगर्भ में बारिश के अतिरिक्त पानी का संग्रह होता है जिससे भूगर्भ में पानी की सतह ऊपर उठती हैऔर भूगर्भ में स्थित इस पानी में घुले हुए खनिज द्रव्य अनायास फसल को प्राप्त होते हैं। भूमि भुरभुरी होने से फसलों की जड़ें चारों ओर फैलती हुई गहराई तक जाती हैं जिससे वनस्पति में अधिक शाखायें, पत्तियां, फूल, फल निकल आते हैं। वहपान - पत्ती गलता है जिससे केंचुए और अधिक संख्या में बढ़ने लगते हैं और भूमि दिनों दिन अधिक उर्वर होती जाती है। रोगमुक्त , रसीले , चमकीले , टिकाऊ , सुस्वादु , सम आकार वाले और
अधिक मात्रा में फल लगते हैं, अनाज में बढ़ोत्तरी होती है। (6) एक ही समय, उसी जगह में आवश्यक पोषकत्व प्राप्त होने से विभिन्न
कंपनियों की विभिन्न प्रकार की दवायें या खाद मोल लेने से बचाव होता
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200 सालों में प्रकृति जितनी उर्वरा भूमि की परत बना सकती है वह कार्य
दस मिली मीटर मोटाई की उर्वरा मिट्टी केंचुए हर साल बनाकर कर देते हैं। (8) खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाये बगैर भूगर्भ में दस फीट अंदर प्रवेश
करके वहां के पोषक तत्व केंचुए ऊपर लाकर अपने अन्य जीवाणु-श्रृंखला के माध्यम से फसल को उपलब्ध कराते हैं। एक हेक्टेयर में एक टन केंचुए
और एक टन जीवाणु पाँच हॉर्स पॉवर ट्रैक्टर जितनी पल्टी जमीन को देते हैं। वायु मंडल में 80 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा है, लेकिन फसल स्वयं उसका लाभ नहीं उठा सकती है। ये जीवाणु भूगर्भ में के खनिज और वातावरण के नत्र फसल को प्राप्त करा देने का मुक्तिवाहिनी का काम
करते हैं। (9) भूमि की गहराई में हवा का प्रवेश कराके उसका तापमान सुस्थिर रखने का,
सामू को रखकर भूमि में क्षार और अम्ल को नियंत्रिात करने का काम करते हैं। वे फसलों को लाभ पहुंचाने वाले जीवाणुओं की संख्या में दस गुना
वृद्धि करते हैं। भूमि का कटाव रोकते हैं। . (10) खेत में उचित मात्रा में केंचुओं के निर्मित होने पर और पर्याप्त मात्रा में
खरपतवार, पान- पत्ती-घास-फूस जमीन में उपलब्ध रहने पर बाहर से खाद डालने की जरूरत नहीं होगी। एक समय हमारे देश में उपलब्ध गोधन
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स्वदेशी कृषि