Book Title: Gau Vansh par Adharit Swadeshi Krushi
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 70
________________ है, और विश्वास है कि दो-तीन साल अगर हम प्राकृतिक खेती का प्रयोग करें तो जरुर आपकी मिट्टी में फिर से ताकत आ जायेगी। तो प्राकृतिक खेती की तरफ गंभीरता से सोचिए। हमारे देश में बहुत बड़े-बड़े लोग हैं जो प्राकृतिक खेती के प्रयोग कर रहें है और जो लोग प्राकृतिक खेती के प्रयोग कर रहें है उनके प्रयोगों से जो परिणाम निकल रहें है वो बहुत ही उत्साहवर्धक है। मेरे कई दोस्त हैं इस देश में, जो प्राकृतिक तरीके से अपने खेत में खेती कर रहे है और उनका उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ रहा है और उनके द्वारा पैदा किये गए उत्पादनों में जो मिठास है, जो उनमें क्वॉलिटी है वो किसी भी तरह दूसरे भोजन में मुझे तो नहीं दिखाई देती। मेरे बहुत सारे दोस्त है जो पूरे देश में इस काम में लगे हुए है। तो आप से भी मेरा निवेदन है की गाँव-गाँव में प्राकृतिक खेती कैसे की जाये उसके लिए शिबिर लगाया जाए किसानों के सम्मेलन आयोजित किये जाएं, किसानों की जो संस्थाएँ हैं जगह-जगहपर वो संस्थाएँ किसानों को एकजुट करें, सम्मेलन आयोजित हो वर्कशॉप आयोजित हो किसानों को समझाया जाए कि प्राकृतिक खेती के नतीजे क्या निकलते हैं। जिन लोगों ने प्राकृतिक खेती करके नतीजे पाये हैं और उत्साहवर्धक परिणाम उनके आये हैं उन लोगों को सम्मेलन में बुलाया जाए और उनके माध्यम से चर्चा गाँव-गाँव में चलाई जाए। गाँव-गाँव के किसानों को उसमें शामिल किया जाए। एक रास्ता यह हो सकता है हमारे इस विदेशीकरण से बाहर निकलने का,और विदेशीकरण से बाहर निकलने का एक और गंभीर प्रयास आपको करना पड़ेगा। आज कल हमारे देश में खेती में मोनोकल्चर आ गया है। मोनोकल्चर माने एक जैसे खेती पूरे देश में होने लगी है। अभी कपास करना शुरु किया तो सबने कपास-कपास ही लगा दिया। एक के बाद एक ने कपास लगाना शुरु किया। फिर सोयाबीनलगाना शुरु हुआ तो सबने सोयाबीन-सोयाबीन लगाना चालू किया। एक भेड़ चाल हो गई है पूरे देश में। बगल के किसान ने लगा के देखा तो हम भी लगायेगें। बगल का किसान कुएं में गिरेगा तो क्या आप भी गिरेगें। वो अपना सत्यानाश करेगा तो क्या आप भी करेगें अपना। वो पागल हो गया है; आप भी बनेगें क्या पागल? तो अपनी खेती को इस मोनो कल्चर में से बाहर निकालिए। माने विविधता लाइये उत्पादन में। मैं यह नहीं कहता कि कपास मत करिए। कपास भी करिए। कपास के साथ-साथ उड़द भी करिए। मूंग भी करिए। तुवर भी करिए। गेहूँभी करिए। चावल भी करिए। तमाम विविधता-विविधता वाली फसलें करिए। आपकी मिट्टी की शक्ति बरकरार रहें। आप जानते हैं कि वैज्ञानिक भी इस बात को कहते हैं कि कपास के बाद; कपास लगाने से खेत खत्म होता है। मिट्टी स्वदेशी कृषि

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