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खेती को विदेशीकरण से
बचाने के उपाय
(पुसद, यवतमाल में राजीव भाई द्वारा दिया गया व्याख्यान - भाग 3) __ आजादी के पचास साल हो गए हैं, पचास साल से हमारी संसद में यह बहस चल रही है कि गौ-हत्या पर पूरे देश में केन्द्रीय स्तर पर पाबंदी लगाई जाए। लेकिन आज तक वो कानून नहीं बन पाया और उसके लिए भी हमको लगातार प्रयास करना होगा और उसके लिए लड़ना होगा। तो एक काम तो सरकारी तौर पर संघर्ष का होगा और पार्लियामेण्ट के स्तर पर संघर्ष का होगा,सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ेगा, हाईकोर्ट में जाना पड़ेगा, अदालतों से लड़ना पड़ेगा, देश के लोगों को आन्दोलित करना पड़ेगा, सत्याग्रह करने पड़ेगें। एक तो इस स्तर पर काम चलेगा और एक दूसरे स्तर पर भी काम हमको शुरु करना पड़ेगा कि पिछले 200-300 सालों में हमारी खेती का जो विदेशीकरण हो गया है और हमारी खेती का जो परदेशीकरण हो गया है। इस विदेशीकरण से अपनी खेती को बाहर निकालना पड़ेगा, किसानों को विदेशीकरण से बाहर निकालना पड़ेगा। ____ आप पूछेगे कि क्या विदेशी करण हो गया है? हम सब लोग रासायनिक खाद इस्तेमाल करते हैं,खेती में जो विदेशीकरण का प्रतीक है, हम सब लोग कैमिकल्स डालते है पैस्टीसाईड के रुप में जो विदेशीकरण का प्रतीक है हम लोग ट्रैक्टर से खेत जोतते हैं जो विदेशीकरण का प्रतीक है। हम लोग हायब्रिड सीड्स इस्तेमाल करते हैं जो विदेशीकरण का प्रतीक है। और लोगों के मन में जाने-अनजाने यह गलत फहमी बैठगई है कि खेती का विदेशीकरण करके हमारा उत्पादन बहुत बढ़ सकता है। आपको मैं जानकारी दे दूँ कि ट्रैक्टर से लगातार खेत जोतने के बाद
स्वदेशी कृषि