Book Title: Fool aur Parag Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 19
________________ फूल और पराग राज्य कोष से जितना धन लेना चाहो ले लो और मोहरें शीघ्र हमें दे दो।" सेठ ने कहा- "राजन् ! नीति और अनीति का विनिमय कैसा ? कितना किसके बदले में दिया व लिया जाय ?" राजा ने कडक कर कहा-"तुम्हें तो अपने धन पर बड़ा घमण्ड है, ऐसी उसमें क्या विशेषता है, जरा देख तो सही।" सेठ ने दृढ़ता के साथ कहा-"अवश्य, धन की परीक्षा होनी ही चाहिए।" राजा ने उसी समय राज्य भण्डार से मोहरों की एक थैली मंगाई, और सेठ ने भी अपनी जेब से पाँच मोहरें निकाल कर दी। दोनों प्रकार की मोहरें मन्त्री को देते हुए कहा-"जरा परीक्षा कर बताओ कि इनका जीवन और विचारों पर क्या प्रभाव पड़ता है।" _____ मंत्री ने सेठ की पांचों मोहरें एक मच्छीमार को दी। मच्छीमार के हाथ में ज्यों ही मोहरें पहुंची, उसके विचार बदल गये । “आज से अब में कभी भी जीव हिंसा का निकृष्ट कार्य नहीं करूंगा। इन मोहरों से मैं अहिंसक रीति से व्यापार करूंगा। आज से मैं ऐसा जीवन जीऊंगा जो आदर्श होगा।" उसने मछलियां पकड़ने के जाल को एक तरफ फेंक दिया। वह अहिंसक जीवन जीने लगा। राजा से प्राप्त मोहरें मंत्री ने एक पहँचे हुए योगी को अर्पित की। योगी, जो वर्षों से तप तप रहा था, ध्यान और जप की साधना कर रहा था, राजा की मोहरें मिलते Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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