Book Title: Fool aur Parag Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 95
________________ ८२ फूल और पराग आती थी उसे देते हुए कहा - "तुम हमारे लिए बढ़िया भोजन बना कर लाया करो हम तुम्हारे को प्रतिदिन चार चार अनमोल रत्न देंगी।" नौकरानी रत्नों को देखकर प्रसन्न थी, वह मनोवांछित भोजन लाने लगी । अर्धरात्रि में चारों बालाएं मंत्र के प्रभाव से भव्यभवन से नीचे आयी । भवन के द्वार पर ही एक लकड़ा पड़ा हुआ था, उन्होंने सोचा- आज इसी पर बैठकर हम घूमने जायेंगी । लकड़े पर बैठकर वे चारों घूमने के लिए चलदीं । कुछ समय के पश्चात् ही सेठ सागर लघु शंका के लिए उठा, पर मकान के बाहर लकड़ा न देखकर चिन्तित हो गया कि वह कहाँ गायब हो गया । किस दुष्ट ने चुरा लिया। वह पुनः जाकर सोया पर नींद नहीं आयी । सुबह उठकर देखा तो लकड़ा दरवाजे पर ही पड़ा हुआ था । सागर को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । उसने निर्णय लेना चाहा। दूसरी रात्रि में वह छिपकर बैठ गया कि कौन चोर मेरा लकड़ा चुराता है । अर्धरात्री में चारों पुत्र वधुएं मकान से नीचे उतरीं, लकड़े पर बैठकर आकाश में उड़ गई । सागर सेठ के पेट का पानी हिल गया । उसने पुत्र वधुओं के कमरे में जाकर देखा, ताला द्वार पर लगा हुआ है वे चारों गायब हैं। सेठ इधर-उधर देखता रहा, प्रातः काल होने के पूर्व ही पुत्र वधुए आयीं और अपने कमरे में चली गई । सागर को शंका हो गई ये चारों व्यभिचारिणी हैं, रात्री में कहाँ पर जाती हैं जरा इसका भी मुझे अता-पता Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134