Book Title: Fool aur Parag Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 94
________________ करनी जैसी भरनी आध्यात्मिक चिन्तन से ही हमें अपने जीवन को चमकाना है।" चारों आर्त और रौद्र ध्यान छोड़कर धर्म ध्यान का चिन्तन करने लगीं। तपः आराधना, जप-साधना करने लगीं। छः माह का समय पूर्ण हुआ। एक दिन वे अर्धरात्री में आत्म-चिन्तन में तल्लीन थीं कि एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। सारा कमरा उसके प्रकाश से आलोकित हो उठा । दिव्य-ज्योति ने कहा- "मैं तुम्हारी आध्यात्मिक साधना पर प्रसन्न है, वर मांगो !" आशा, उषा, वर्षा और भारती ने कहा-"हमारी साधना वर मांगने के लिए नहीं है, हम तो आत्म दृष्टि से ही साधना कर रही हैं, हमारे को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है।" ____ ज्योति पुञ्जदेव ने कहा- "देव दर्शन कभी निरर्थक नहीं जाते। कुछ न कुछ तुम्हें मांगना ही होगा।" आशा ने कहा-"आप ऐसा कोई मंत्र हमें दीजिए जिससे हम आकाश में उड़कर घूमने के लिए बाहर जा सकें। छः माह से एक ही कमरे में बंद होने से हमारा दम घुटा जा रहा है।" ज्योति पुञ्ज ने मंत्र दिया और अदृश्य हो गया। चारों बालाएं मंत्र के प्रबल प्रभाव से अनन्त गगन में पक्षी की तरह उड़ती हुई रत्नद्वीप पहुंच गई। प्राकृतिक सौन्दर्य सुषमा को निहार कर वे अत्यधिक प्रसन्न हुई। रत्नद्वीप में रत्नों के ढेर लगे हुए थे। चारों ने एक एक रत्न लिया और अपने स्थान पर पुनः चली आयीं। उन्होंने वे चारों रत्न नौकरानी, जो भोजन देने के लिए Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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