Book Title: Fool aur Parag
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 129
________________ ११६ फूल और पराग तलवार चलाई। गाय उछलकर एक ओर हो गई, असावधानी से तलवार के द्वारा उसकी कनिष्ठ अंगुली कट गई। अपार वेदना होने लगी। कसाई सोचने लगामेरो छोटी सी अंगुली कटने पर मुझे कितना दर्द हो रहा है, मैंने अपने जीवन में हजारों प्राणियों को काटा उन्हें कितना दर्द हुआ होगा । मुझे धिक्कार है ! भावना की उत्तरोत्तर विशुद्धि हई, कर्म दल नष्ट होते गये। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय को नष्ट कर वह केवलज्ञानी बन गया। शिष्य को 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो' की बात समझ में आ गई। वह भी अपने जीवन का अन्तनिरीक्षण करता करता केवली बन गया। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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