Book Title: Fool aur Parag
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 127
________________ | कसाई केवली बना आचार्य धर्मघोष अपने अनेक शिष्यों सहित जन-जन के मन में त्याग निष्ठा,संयम प्रतिष्ठा उत्पन्न करते, अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त की ज्योति जगाते, पैदल परिभ्रमण करते हुए वाराणसी पधारे। भावुक भक्तों ने और श्रद्धालु-श्रावकों ने उनका हृदय से स्वागत किया। जुलुस नगर के मध्य में से होकर जा रहा था । एक शिष्य की दृष्टि पास ही के एक मकान में गिरी । एक व्यक्ति हाथ में चमचमाती तलवार लेकर एक गाय को मारने की तैयारी कर रहा है। शिष्य के रोंगटे खड़े हो गये। उसका हृदय अनुकम्पा से कांप उठा। शिष्य ने गुरुदेव से जिज्ञासा प्रस्तुत की-भगवन् ! यह कसाई कितना क र, निर्दयी और हत्यारा है, तनिक से अपने स्वार्थ के लिए, निरपराधी मूक प्राणी को मारने जा रहा है। देखो न ! मरने के भय से पशु कांप रहा है। बंधन से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा है किन्तु इसे बिल्कुल ही दया नहीं आ रही है। भगवन् । कृपा कर बताइए यह कसाई मर कर कहां जायेगा ? पशुयोनि में या नरक योनि में। ११४ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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