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फूल और पराग
है. पर नमक न होने से किसी का भी स्वाद नहीं आ रहा
अमतसेन-"राजन् ! हमने सुना था कि आपको नमक अच्छा नहीं लगता। आपने अपने तीसरे पुत्र को इसीलिए मरवा दिया था कि उसने आपको नमक के समान मधुर कहा था।"
चन्द्रसेन को अपनी भूल मालूम हुई। उसे आज मालूम हुआ कि वस्तुतः-नमक रसराज है। पुत्र ने जो कहा वह सही था। उसने अपने प्यारे पुत्र को पहचान लिया, पुत्र को गले लगाते हुए कहा-मैंने तुम्हारे तात्पर्य को नहीं समझा था, मैंने तुम्हें मरवाने का प्रयत्न किया, पर तेने मेरी भूल सुधार दी । अमतसेन भी पिता के चरणों में गिर पड़ा।
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