Book Title: Fool aur Parag
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 120
________________ परिवर्तन प्रभा मधुर भाषिणी, सुशील व धर्मनिष्ठ महिला थी। उसके चेहरे पर इन दिनों में अपूर्व उल्लास व प्रसन्नता थी । वर्षों के पश्चात् उसकी आशा पूर्ण होने जा रही थी। भावी पुत्र की कल्पना कर उसका मन थिरक उठता था। रजनीकान्त ने धीरे से कमरे में प्रवेश किया। उसका मन अशान्त और उद्विग्न था। वह अपने दुःख को प्रकट करना नहीं चाहता था । कृत्रिम हंसी हंसते हुए उसने कहा---प्रभा ! तुम्हारा स्वास्थ्य तो ठीक है न ! प्रभा-मेरा स्वास्थ्य इन दिनों में बहुत अच्छा है। पर आपका मुख-कमल म्लान कैसे है ? क्या आपको कुछ कष्ट है ? रजनीकान्त-प्रभा ! मेरी स्थिति बड़ी विषम है, लगता है मुझे तीन चार दिनों में शहर छोड़कर भागना पड़ेगा । व्यापार में भयंकर नुकसान लग गया है । लाखों का कर्जा हो गया है । मैं अब अपना मुह दिखा नहीं सकता । वर्षों से मैं जिस पुत्र के लिए छटपटा रहा था Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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