Book Title: Fool aur Parag
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 124
________________ परिवर्तन १११ अमेरिका से आया है, उसे कहा जाय तो चार सौ पाँच सौ रुपए सहज रूप में उपचार के लिए मिल सकते हैं । तीन चार व्यक्ति मिलकर रजनीकान्त के पास गये । लड़के की गंभीर स्थिति का दिग्दर्शन कराया और उपचार के लिए सहायता माँगी । रजनीकान्त ने साफ इन्कारी करते हुए कहा- मेरा पैसा पुत्र, पत्नी और परिवार के लिए है । रास्ते चलते हुए ऐरे-गेरे लोगों को देने के लिए नहीं । दुनिया में हजारों व्यक्ति बीमार होते हैं और मरते हैं मैं किन-किन की चिन्ता करूं । वे निराश होकर लौट गये । उन्होंने जाकर देखा नरेन्द्र अन्तिम सांस ले रहा था । उसकी संभाल लेने वाला कोई नहीं था । नरेन्द्र के मरते ही पुलिस वहां आयी उसने नरेन्द्र की झड़ती लो । जेब में से दो सौ रुपए और रजनीकान्त के हाथ का लिखा हुआ पत्र निकला। पुलिस ने रजनीकान्त के हाथ में पत्र देते हुए कहा- क्या यह पत्र तुम्हारा है । पत्र को देखते ही रजनीकान्त घबरा गया । उसने कहा- यह पत्र मैंने अपने पुत्र नरेन्द्र को लिखा था, पर तुम कहां से लाये हो ? पुलिस ने बताया - एक अठारह-बीस वर्ष का लड़का धर्मशाला के बाहर ही वृक्ष के नीचे मर चुका है, उसी की जेब से यह पत्र निकला है। रजनीकान्त को समझने में देर न लगी कि पास के कमरे में जो लड़का दर्द से कराह रहा था वह उसी का लड़का नरेन्द्र था । वह उसके Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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