________________
१६
चोर नहीं देवता
सेठ धनपाल धारानगरी के प्रसिद्ध उद्योगपति थे । सत्यनिष्ठ होने के कारण उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि सभी व्यक्ति उनको दिल से चाहते थे । उनकी दुकान पर रात-दिन भीड़ लगी रहती थी । धनपाल को किसी आवश्यक कार्य से उज्जैनी जाना था । वह एकाकी घोड़े पर बैठकर चल दिया ।
1
मार्ग में जंगल पड़ता था, उस जंगल में क्रूर स्वभावी कालुसिंह तस्कर रहता था । लोग उसके नाम से काँप जाते थे । दूर से सेठ को आते हुए देखकर कालूसिंह ने मार्ग रोका। गंभीर गर्जना करते हुए कहा- कहाँ जा रहे हो ? बताओ तुम्हारे पास क्या है ?
सेठ ने अपने हाथ को छोटी सी लकड़ी चोर को देते हुए कहा - इसमें चार अनमोल रत्न छिपाकर रखे हैं । इसके अतिरिक्त अन्य कोई भी चीज तुम्हारे को देने योग्य मेरे पास नहीं है ।
चोर ने लकड़ी को गहराई से देखी, पर उसे मालम न हो सका कि इसमें रत्न कहां है ? उसे लगा सेठ झूठ
१०२
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org