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बुद्धि का चमत्कार
हो गई। दासियों ने उसे उपचार कर होस में लाया। राजा अब मुझे किस बेमौत से मारेगा यह कल्पना कर उसके रोंगटे ही खड़े हो गए। दासियों ने कहा- "मालकिन ! घबराने से कार्य न होगा कुछ उपाय करना चाहिए।"
वैश्या--"मुझे तो इस समय कुछ उपाय ही नहीं सूझ रहा है। बताओ इस नगर में कौन बुद्धिमान व्यक्ति है, जो मुझे उवार सके।
दासियां-"अनिल का तो आपने नाम सुना है न ! वह इतना चतुर है कि बिगड़ी बात को भी सुधार देता है।"
वैश्या-"तुमने ठीक कहा । जाओ बीस हजार की थैली उसके चरणों में रखकर कहना कि मालकिन ने आपको शीघ्र बुलाया है, इतने से भी यदि वह आने के लिए प्रसन्न न हो तो और भी लोभ दे देना । दासियां वैश्या के आदेश से अनिल के घर गई । घर का द्वार खल वाकर कहा कि बीस हजार रुपए कृपा कर लीजिए, और मालकिन ने इसी समय आपको बुलाया है अतः चलिए।
अनिल-"रात्रि के समय मैं वैश्या के वहां पर नहीं आ सकता, लोग मेरे चरित्र के प्रति शंका करेंगे।"
दासियों के द्वारा अत्यधिक अनुनय विनय करने पर और एकावन हजार रुपए देने का अभिवचन देने पर अनिल दासियों के साथ वैश्या के घर गया। वैश्या ने रोते-रोते सारी बात बतादी और प्राणों की भिक्षा मांगी।
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