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फूल और पराग अनिल ने पहले दासियों द्वारा एकावन हजार रुपए घर पर भिजवा दिये और कहा-'आपने काम तो बहुत ही बुरा किया है पर अब मैं इसे निपटा दूगा । आप यहीं रहें। मेरे साथ किसी को भी आने को आवश्यकता नहीं। वह राजकूमार प्रदीप की लाश को लेकर वहां से चल दिया। लाश को लेकर वह सीधा ही नगर बाहर आया। उस दिन ईद का दिन था। सैकड़ों मुसलमान वहां पर एकत्रित हुए थे। जलसा पूरे यौवन पर था। गैस का प्रकाश जगमगा रहा था । अनिल ने राजकुमार की लाश को जो बढ़िया वस्त्रों से सुसज्जित थी उसे दो वृक्षों के सहारे खड़ी करदी । और उस लाश के पीछे खडे रहकर हाथ में चार-पाँच पत्थर लिए, निशाना लगाकर इस प्रकार मारे की दनादन एक के बाद दूसरा गैस फूटता चला गया। सभा में कोलाहल मच गया, कि किस दुष्ट ने गैस को फोड़ दिये हैं। लोग सभागृह से बाहर आये वहां तक तो अनिल भग कर काफी दूर निकल चुका था। ___मुसलमान भाइयों का खून उबल रहा था वे लकड़ियां और पत्थर को लेकर मारने दौड़े। उन्होंने अंधेरे में वक्ष के पास खड़ा किसी आदमी को देखा, हां यही शैतान है जिसने हमारे गैसों को फोड़ा है। वे सभी उस पर पत्थर और लाठियों की वर्षा करने लगे। लाश नीचे गिर पड़ी। किसी समझदार मुसलमान ने कहा-'जरा प्रकाश कर देखो तो सही यह कौन है ?"
ज्यों ही प्रकाश कर देखा त्यों ही राजकुमार प्रदीप
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