Book Title: Fool aur Parag Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 54
________________ अभिमान गल गया ४१ मण्डल लेकर उनके पास पहुंचे। उन्होंने कहा - "मुनिवर ! आपकी वक्तृत्व शक्ति की प्रशंसा हमने बहुत सुनी है । किन्तु हम 'बाबावाक्यं प्रमाणम्' मानने वाले व्यक्ति नहीं हैं। हम तो तभी आपकी विद्वत्ता स्वीकार करेंगे जब आप हमारे सामने हमारे द्वारा दिये गये विषय पर एक घण्टे तक संस्कृत भाषा में धाराप्रवाह प्रवचन करेंगे ।' यशोविजय जी ने स्वीकृति प्रदान की । t पण्डितों ने कुछ क्षण रुक कर फिर कहा - "देखिए, प्रवचन में यह भी स्मरण रखिएगा कि कहीं एक भी दीघ मात्रा न आने पाये । उपाध्याय जी ने यह भी स्वीकार किया । 'मुक्ति' इस विषय पर जब उन्होंने धारा प्रवाह संस्कृत भाषा में दार्शनिक विश्लेषण प्रस्तुत किया तो सभी विद्वान विस्मय से विमुग्ध हो गये । उन्होंने उनके प्रवचन की प्रशंसा करते हुए विशिष्ट उपाधि से उनको समलंकृत किया । चारों ओर उपाध्याय जी को कीर्ति कौमुदी दमकने लगी । प्रशस्तियां गाई जाने लगी । - 1 लोगों के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर उपाध्याय जी के मन में भी अहंकार जाग गया। वे स्वयं भी अपने आपको महान समझने लग गये । अपने पाण्डित्य के प्रदर्शन के लिए उन्होंने छोटी सी एक काष्ठ पीठिका रखी जिसके चारों कोनों पर विजय के प्रतीक रूप में चार झण्डियाँ लहलहा रही थीं । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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