Book Title: Fool aur Parag Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 86
________________ ७३ रानो का न्याय पहले के समान ही सत्यघोष के यहाँ रानी ने दासी भेजी । दासी ने उसकी पत्नी से कहा- "सत्यघोष ने यह कैंची भेजी है और कहलाया है कि मैं मृत्यु संकट में पड़ा.. हुआ हूँ । अतः पेटी में जो रत्नों की डिब्बी रखी है वह दे दो ।" सत्यघोष की पत्नी ने सुना, उसे विश्वास हो गया मेरा पति संकट में है । तथापि उसने कहा कि वस्तुतः "मैं तलाश करूँगी कि रत्न कहा हैं ।" तीसरी बार फिर खेल प्रारंभ हुआ। पराजित होने पर इस समय रानी ने उसकी जनोई मांग लो । दासी ने जाकर सत्यघोष की पत्नी से कहा - "देखो न ! यह जनोई उसने मुझे दी है, और कहा है रत्न अवश्य दे दो । यदि रत्न न दोगी तो उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जायेगा फिर तुझे पश्चाताप करना पड़ेगा । सत्यघोष ने वे ही रत्न मंगाये हैं जो सुमित्र ने रखे थे ।' " सत्यघोष की पत्नी ने देखा, पति आज अवश्य ही संकट में हैं, उन्होंने मुझे अपनी वस्तुएँ भेज कर तीन बार सूचित किया है अतः मुझे अब रत्न दे देने चाहिए। उसने रत्नों की डिबिया निकालकर दासी को देते हुए कहा - "ये वही रत्न हैं जो सुमित्र ने रखे थे ।” दासी रत्नों की डिबिया को लेकर प्रसन्नता से रानी के पास आयी । और सारी बात बता दी । रानी ने सत्यघोष को कहा - "तुम तीन बार हार चुके हो, अब मैं तुम्हारे से खेल खेलना नहीं चाहती । Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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