Book Title: Fool aur Parag Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 82
________________ रानी का न्याय कैंची रखकर दुनिया को यह कहता है कि मुह से एक भी शब्द मिथ्या निकल गया तो मैं अपनी जबान काट दूगा, क्या वह इस प्रकार झूठ बोलता है ?" __सूमित्र ने नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों से एवं वहाँ के राजा से निवेदन किया कि "मेरे पाँच रत्न सत्यघोष ने ले लिए हैं, कृपया आप उन्हें समझाकर मुझे मेरे रत्न दिलवा दीजिए।" किन्तु सभी ने यही कहकर उसकी उपेक्षा की कि "सत्यघोष स्वप्न में भी कभो असत्य नहीं बोल सकता, तू ही झूठा है, और उस पर मिथ्या आरोप लगा रहा है।" सुमित्र निराश होकर नगर में घूमने लगा। एक वृद्ध अनुभवी ने उसे सलाह देते हुए कहा-"अब तेरा न्याय महारानी के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता। तू ऐसा कर,राजमहल के पीछे बगीचा है बगीचे में ऊंचे से ऊँचे वृक्ष पर चढ़ कर तू पुकार, महारानी यदि तेरी पुकार सुनलेगी तो वह तुझे रत्न दिला देगी। वह इतनी बुद्धिमान है कि राजा की गंभीर समस्या भो वह सुलझा देती है।" सुमित्र को वृद्ध को बात तथ्य पूर्ण मालूम हुई। उसे रत्न जाने का उतना दुःख नहीं था जितना दुःख इस बात का था कि जो मिथ्यावादी है, उसे सत्यवादी समझा जा रहा है और जो सत्यवादी है उसे मिथ्यावादी । दूसरे दिन प्रातः काल ही सुमित्र बगो चे में पहुंचा। और वृक्ष पर चढ़कर उसने निम्न दोहा कहा Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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