Book Title: Fool aur Parag
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 52
________________ मयणल्लदेवो ३६ सकती, पुत्र के विचारों में परिवर्तन लाने के लिए मुझे स्वयं चिता में प्रवेश करना होगा। तू चमड़ी की परख करनेवाला चमार है, हृदय को देखने वाला इन्सान नहीं। मुझे ऐसा मालूम होता है कि मेरा पुत्र इस विचारधारा का होगा, मेरे उज्ज्वल दूध को लजायेगा तो मैं तुझे कभी का खत्म कर देती।" राजा कर्ण माता के चरणों में गिर पड़ा। 'माता! मैंने नारी जाति का भयंकर अपमान किया है, मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।" विधि सहित मयणल्लदेवी का पाणिग्रहण राजा कर्ण के साथ सम्पन्न हुआ। मयगल्लदेवी के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम सिद्धराज था । सिद्धराज की वीरता, धीरता, सरलता और सदाचार किस से छिपा है। एक शब्द में कहा जाए तो सिद्धराज गुजरात का ही नहीं, भारत का सच्चा गौरव था । चालुक्य वंश के इतिहास में मयणल्लदेवी का नाम आदर्श पतिव्रता और आदर्श माता के रूप में युग-युग तक चमकता रहेगा। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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