Book Title: Fool aur Parag
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 26
________________ धूर्त की अमानत सेठ ने गंभीर चिन्तन के पश्चात् कहा - "मुझे स्मरण नहीं आ रहा है कि आपने कब और कौनसी अमानत मेरे पास रखी है ?" धूर्त ने मुंह मटकाकर कहा - " अब क्यों स्मरण आने वाली है, मालूम होता है तुम्हारी भावना ठीक नहीं है, तुम उसे हजम करना चाहते हो ।" सेठ ने विचारा, संभव है मैं कहीं विस्मृत हो गया हूँ । उसने अपनी बही के पन्ने आदि से अन्त तक उलट दिये, पर कहीं पर भी एकाक्षी का नाम न मिला, और न अमानत की वस्तुओं में ही उसकी वस्तु मिली । सेठ विचारने लगा - " आज तक किसी की भी वस्तु मेरे यहाँ से गुम नहीं हुई है, फिर इसकी वस्तु कहाँ चली गई ?" . सेठ के चमकते हुए चेहरे पर चिन्ता की रेखाएं उभर आयीं । धूर्त ने विचारा - अब मेरा मनोरथ सिद्ध हो जायेगा । धूर्त ने कहा - " सेठ ! तुम्हें समय की कीमत का भी ध्यान है या नही, मैं कब से बैठा हूँ ?" सेठ ने दृढ़ता के साथ कहा - " आपकी अमानत कोई भी मेरे पास नहीं है, यदि आपको स्मरण हो तो बताएं कि आपकी कौनसी वस्तु मेरे पास है ?" धूर्त ने मुस्कराते हुए कहा- "मालूम होता है कि तुम भुलक्कड प्रकृति के हो, तुम्हें कोई भी बात याद नहीं रहती है, ऐसी स्थिति में क्या व्यापार खाक करोगे ? देखो न ! अभी कुछ ही दिन पूर्व में अपनी दाहिनी आँख तुम्हारे यहां अमानत रख के गया था ।" Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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