Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 11
________________ चालाकी पर मन व मस्तिष्क समेत झूक गया । चेलणाकी खुशी तो और बढ गई, इसकी धर्मश्रद्धा भी ओर बढी... इतना ही नहीं, श्रेणिकने तबसे जैन धर्मकी हँसी उडाना छोड़ दिया । राजूने बात पूरी की तब तो (दोनों) ठीक ठीक आगे बढ़ गये थे। संजू भी भूतकालकी इस इतिहासकी गहरी नींद से जैसे जागृत हुआ हो ऐसे सभान अवस्था सह चलने लगा। किन्तु, वह "अलख निरंजन'' मुनिका दृश्य उसकी नजरसे हिलता नहीं था । 00000000 Gooooook Jain Edo

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