________________
मक्खीचूस मम्मण : नदीतट पर मित्रबेलडी
दीके तट पर दोनों मित्र एक वृक्षकी नीचे विश्रांति लेने बैठे। राजुको एक बात याद आई। उसने संजूको क • संजू ! सारी राजधानीमें मक्खीचूस (कंजूस) के रूपमें प्रसिद्ध बने मम्मणसेठ - लँगोट पहनकर (सूर्यास्त बाद स्वयं) इसी नदीमें कूद पडता और दूरसे आते चंदनकी लकडीको खींचकर इसको बेंचकर इसके बद अत्यंत कीमती रत्नोंको इकट्टा करता। इसी तरह इसने रत्नों और मणियोंसे भरे-पूरे दो बैल तैयार कि इसमें एक बैल संपूर्ण तैयार हो गया था। दुसरे बैलके दो सींग ही मात्र शेष थे, यह सींगको पूर्ण करनेके लिए ही इतनी मेहनत
करता था।
वह इतना कंजूस था कि भोजन में सिर्फ चवला ही खाता था। और चवलाके संग तेल-वापरते। बस, यह श्रीमंतके नसी खानेके लिए तैल और चवला मात्र दो ही चीज थी। अकेले चवला खाने से वायु हो जाय... और तबियत बिगड़ जाय तो दवाईके खर्च हों... इसीलिए चवलाके साथ तैल लेते। सुबह उठकर कोई इसका नाम ले या सामने मिले तो... तो... अपशकुन गिना ज (माना जाता)।
वर्षाऋतुकी एक रात्रिमें झरोखेमें बैठी रानी चेलणाने यह श्रीमंत (मम्मण) को नदीमें छोटी धोती (लँगोट) पहनकर उत और चंदनके लकड़ेको खींचते देखा। चेलणाने अपने पति श्रेणिकको यह बताते हुए कहा कि आपकी नगरीमें ऐसे दुःखी बसत इनकी जरा भी आप देखभाल नहीं करते ?
40
For Private & Personal Use Only:
www.jaihelibrary