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चित्रपट ४. : घर आकर माता-पिता के समक्ष चारित्रकी अनुमति मांगते है। मोहवश माता-पिता कहते हैं : वत्स ! पहले पुत्रवधूओंका मुँह हमें दिखाओ फिर जो करना हो वह करो। जंबूने कहा - मंजूर है ! परंतु जिस दिन शादी का वरधोडा निकलेगा, इसके ठीक दूसरेही दिन मेरी दीक्षाका भी वरधोडा निकलेगा। माता-पिताने यह बात स्वीकार कर ली।
चित्रपट १०. : राजगृहीके राजमार्ग पर (अभी तो क ही जिसकी शादीका वरधोडा निकला था, उसी मार्ग प । जंबू,जंबूके माता-पिता, आठ कन्या, आठ कन्याओके मात । पिता, और ५०० चोरोंके साथ जंबूकी दीक्षाका वरधो । निकला।
चित्रपट ११.: वरधोडा पंचम गणधर (प्रभु महावीर प्रथम पट्टधर) सुधर्मास्वामीके पास पहुँचा। जंबू सहित ५२। की एक ही साथ दीक्षा हुई। नगरके लोगोंके आश्चर्यका अवा न रहा । यह सत्य या स्वप्न ? यही इनकी समझमें नहीं । रहा था!
चित्रपट - ५. : अप्सरा के समान आठ-आठ अत्यंत रूपवती कन्याओंके संगजंबूकी सगाई हुई थी। उन कन्याओंके माता-पिताको यह बात (हकीकत) बतलाने में आयी...मातापिताओंने कन्याओं को जानकारी दी। उन कन्याओने कहा - एक बार मनसे इच्छित किया हुआ वह (पति) अब दूसरा नहीं होगा। बीचमें एक रात बाकी है। हम आठ है... हमारेमेंसे कोई एक (भी) जंबूको चलित करने में समर्थ है । तो भी वह चलायमान न हुए तो "जहाँ पति वहाँ सती..." हम भी इनके मार्ग पर चल पडेंगे।
चित्रपट १२. : क्रमश: केवलज्ञान पाकर जंबूस्वा सुधर्मास्वामीके पट्टधर बने... वे प्रभु महावीरकी दुसरी पा पर आये। जंबूस्वामीके पट्टधर बने प्रभवस्वामी !
चित्रपट - ६.: धूमधामसे शादी हुई... आठों कन्या ९-९ क्रोड सोनामहोरें लाई.... | कन्याओंके मामाओंकी तरफसे और जंबू के मामा की तरफसे एक-एक क्रोड सोनामहोरें मिलीं (७२+९८१) जंबके पास अठारह करोड सोनामहोरें थीं। जंबू एक ही रातमें निन्यान्वे करोड सोनामहोरोंका मालिक बन गया।
वाह ! अदभूत..... अद्मूत.. कमाल.... जिनशासनकी कैसी बलिहारी!नात जातके भेदबिना योग पर चोर जैसे चोरको भी प्रभुकी पाट पर स्थापन कर सकते यह शासन..! कमाल शासन..... ! अद्भूत शासन.. लोकोत्तर शासन....! जिनशासन.......!
चित्रपट-७.: स्वर्णमोहरका ढेर महलके कोनेमें पडा है, रात्रिमें दरवाजे बंद करके आठों पत्नीयाँ जंबूकी चारों ओर बैठ गयी। फिर चलित करने के लिए अनेक युक्तियाँ की... परंतु जंबुकुमार तो आज जैसे पत्थर-हृदयी बन गये थे। वो जरा भी चलित नही हुए।
संजूके मुखमेंसे यह सब एक साथ निकल पडा..... हा संजू ! राजू बोला : जिनवाणीकी कैसी असीम ताकत सुधर्मा स्वामीकी एक ही देशना-श्रवण मात्रसे जंबूके जीवन वैराग्यकी कैसी ज्वाला प्रगट उठी...। अप्सरा जैसी आठ आठ कन्याओंके कटाक्षबाण, और ऐसे अनेक कामबाणों झडी बरसते हुए भी जिसके एकाध रोंगटेमें भी काम का एका स्पंदन/स्पर्श कर सका नही... । सामान्य मनुष्यके तो । बसकी बात ही नहीं। आठमेंसे कोई एकाध भी हो तो भी क्षण ही सामान्य मानवोंका तो पतन ही हो जाय। परंतु जंबूमें प्रग हुइ वैराग्यकी ज्वालाने तो तत्क्षण ही पांचसौ छब्बीस नये दीपप्रगटा दिये। और इसीलिए ही यह जंबूमहल विख्यात गया, नहीं कि सोनारूपाके ढिग मात्र से....
चित्रपट ८. : आखिर पराजित आठों को ऐसा बोध दिया कि आठोंका मन इस संसार से उठ गया। इतना ही नहीं, पाँचसो चोरके संगचोरी करने के लिए आया हुआ रव्यातनाम "प्रभव-चोर" भी परस्परके वार्तालाप सुनकर परम वैरागी बन गया। इसने भी जंबुके संग ही दीक्षा लेने का निश्चय किया।
चित्रपट ९.: प्रभातमें अब जंबके माता-पिताको और कन्याओंके माता-पिताओंको यह बातकी जानकारी हुइ, तब उनहोने भी जंबुके साथ ही संयम (दीक्षा) लेनेका निश्चय किया।
संजूके रोम-रोम खड़े हो गये । अपनी नगरी महाब्रह्मचारी ऐसे महापुरुषोंके अवतरणसे वह गद्गद | गया। उसका गला भर आया। वह आगे कुछ बोल नहीं सका जंबूकी उस धरतीको वंदना अर्पित करके दोनों मित्र महल बाहर निकले। आगे के सफरके लिए प्रयाण किया..... लोगोंद भीड़के साथ वे भी आगे बढ़े...दूर.. नदी किनारे पहुँचनाथ
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