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लगी....परंतु साथमें मोहनीय आदि कर्म-प्रकृतियाँ भी बिल्कुल टूटने लगीं। महात्माको धर्मराजकी तरफसे केवलज्ञानव भेट मिली। आयु पूर्ण करके महात्मासे परमात्मा बने । मोक्षमें गये। श्रेणियाने उस स्थल पर महोत्सव मनाया...। और व महात्माकी कायमी स्मृतिके लिए स्वर्ण-रजतसे जड़ीत स्तूप बनाया।
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इसतरफ वह सुनारकी पत्नी कान में रहे लकडे लेने गई। इसकी आवाज होते ही वह कौंच पक्षी अचानक जग गया और बी कर दी बीटीस जवल निकले जवलेको देखने के साथ ही सुनारको महात्मा बिल्कुल निर्दोष है... इसकी जानकारी हुई। वह भयभीत बन गया। राजाको मुनिहत्याकी जानकारी होने ही मुझे मौत के घाट जाना ही होगा.... इसी डरके कारण उसने वोह मेतार्यमुनिके रजोहरण आदि मुनिवेश पहन लिया और साधुबन गयो आखिर, इसने भी सच्चे मुनि बनकर आत्मकल्याण साध लिया!
यह मेतार्यमुनि राजगृही नगरी के श्रेष्ठिपुत्र थे। नव-नव रूपरमणीसे शादी हुई थी। तो भी पूर्वभवके मित्रदेवके बोधसे पू संसारको त्याग कर सर्वविरति पंथ पर डग भरे... और इसी भवमें मुक्तिको वरे।
संजू ! मुनिको कौंचपक्षीने जवला चुग लिया है, यह खबर थी तो भी सुनारको कहा नहीं। यदि सुनारको कहे तो सुनार उस पक्षीको चीरकर इसके पेटमेंसे जवला निकालते.... ऐसे एक जीवकी हत्या हो जाने का पूरा संभव था, जो मेतार्यमुनिको इष्ट नहीं था। वे तो स्वयं मरकर भी अन्य जीवोंको बचानेके अत्यंत शुभ भावमें मस्त थे।
संजू तो मरकर भी अन्यको जीवित रखनेवाले यह समताके सागर मेतार्यमुनिको लाख लाख वंदन करता रहा। इसकी जीवन कथामेंसे "सहन करे यह साधु" - "स्वयं मरकर भी सबको जीवित रखनेकी भावना रखे वह साधु....." ऐसा बोधपात ग्रहण किया। खुदको प्राप्त हुए ऐसे निग्रंथ गुरुओंको लेकर वह जातको बड़भागी मानने लगा। अब घर बहुत दुर नहीं था। दोनों मित्र त्वरित गतिसे चलते-चलते नगरके मुख्य चौराहे पर आ पहुंचे।
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