Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 48
________________ शालिभद्रका पुन्यानुबंधि था। राजू ! ये शालिभद्र कौन था? संजू ! इसकी बात मे कल करूंगा। दोनो मित्र घडीभर विश्रांति लेकर नदीके तट उपर ही आगे चलने लगे........ जहाँ लोग बहुत कम थे वहाँ एक स्तूपके पा मित्रयुगल पहुँच गया। महाउपसर्गको सहन करनेवाले मेतार्यमुनिके चरण-पादुका इस स्तूपमें स्थापित थे। दोनों मित्रोंने उन चरणारविंदो भावपूर्ण नमस्कार कीया और नगरकी और जा रही मेले की भीड के साथ दोनो अपने घरकी और प्रयाण किया...... पर रास ठीक लंबा था। "बात करते पंथ खूटे'' ऐसी लोकोक्तिको अनुसरते राजूने संजूके आगे मेतार्यमुनिकी जीवन-कथाका प्रार किया..... 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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