Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 70
________________ बात रुके इसके पहले ही घोडागाड़ी रुक गई। दोनों मित्र नीचे उतरे। चाँदनीके उजालेसे हरी-भरी रात भी आगे बढ़ रही थी। मित्रबेलड़ी घर-पर पहुँची। और का स्वप्नलोककी ओर डूबकी लगा दी इसकी तो खबर ही न रही। राजगृहकी यह वांभ उछलती गौरवगाथा स्वप्नलोकमें भी सत्यलोक जैसी ही ताजी थी। राजधानीकी... जय हो ! राजाधिराजकी... जय हो! राजा श्रेणिककी... जय हो! Jain Educa www.jainelibraragiri For Private & Personal Use Only 64

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