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मित्रयुगल : पंचपहाड़की स्पर्शनामें मशगूल....
ला-बहनईकी अत्यंत रोमांचक घटनाका तादृश चित्तार सुनकर मित्रबेलड़ीका हृदय भर आया... आँखें भर आईं... इनके रोम-रोम पुलकित हो उठे.. क्षणभर तो संजूको भी सर्व-त्यागके पथकी ओर डग भरनेका विचार आ गया। दोम दोम साह्यबीके मालिक भी प्रम महावीर दर्शित मार्ग पर जानेका पसंद कर रहे हैं। यद्यपि वास्तवमें सच्चा सुख तो त्याग और वैराग्य में ही है तो... इनके सामने हमको मिला भी क्या है ? आदि तत्त्विक बातों में जुड़े मित्रयुगलने इस हवेलीसे कदम उठाये पंचगिरिकी यात्रा की तरफ... और थोडी ही क्षणमें तो... इस पंचपहाड़की तलहटीके नज़दीक मित्रयुगल जा पहुँचा।
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सूर्यका रथ भी आगे बढ़ रहा था... तलहटीकी स्पर्शनावे बाद चढ़ाण शुरू हुआ... उपर जाती पगदंडी के सहारे वो थोड़े। समय में प्रथम पहाड़के शिखर पर चढ़ गये। क्षणिक (अल्प विश्राम लेने के बाद वो झड़पसे नीचे उतरे। इसी तरह अन्य भी
दूसरे, तीसरे और चौथे पर्वतका आरोहण और उतरना भी इन्होंने त्वरित-गतिसे किया.. उन-उन रशृंगोंपर रहे हुए जिनमंदिर और गुरुमंदिरोंके दर्शन भी इन्होंने उल्लास सहित किये। जो कि यह पकि पर्वतोंका स्वयंभू महत्त्व है क्योंकि परमात्मा महावीरदेव और इनके विशाल परिवारसे यहाँकी प्रत्येक रजकण स्पर्शित है। जिससे मित्रबेलड़ीको यहाँ कोई अलौकिक दुनियाका अनुभव हो रहा था।
ऐसे चालू दिनोमें यहाँ जनसमूह कम ही होता है। इसमें भी आज मेलेका तीसरा (अंतिम) दिन था । इसीलिए पूरा नगर कौमुदी -महोत्सव मनाने नगरके तीसरे दरवाजेकी ओर बादलकी तरह उमड़ा था... पंचपहाड़ की और एकाद आदमी भी न दिखे ऐसी परिस्थिति थी । अत्यंत प्रशांत वातावरण था। सूरजदादा बादलमें छुपे हुए थे। पर्वतीय हारमालाम विचरते दोनों मित्र एक प्याऊमें ध्यानस्थ मुद्रामें बैठे । ध्यानमें इन्होंने प्रभु महावीरको केन्द्रित किये और अंतरकी दुनियामें खो गये ।
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