Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 59
________________ चलेंगे। धन्नाके पीछे आठों चल पड़ीं। आठों रूपरमणी (पत्नी) धन्नाको स्नान करा रही थी। पत्नी सुभद्रा भी पतिकी पीठ मसल रही थी...रंग बराबर तमा था... और अचानक ही रंगमें भंग पड़ा... धन्यकी पीठ रगरम दो बूंद गिरे..धन्नानेऊपर देखा तोसुभद्राके उदासीन बहरे पर आँसू आ चुके थे... संजू ! आज हमें जहाँ जाना है वह वैभारगिरि ऊपर उस वक्त प्रभु महावीर समवसरे थे। धन्नाने उस दिशा की तरफ कदम बढ़ाये... बीचमें यही शालिभद्रकी हवेली आयी। वहाँसे पसार होते धन्नाने बूम(आवाज़) लगाई... ए...य... शालिभद्र! नीचे उतर...चल,कंगालियत छोड़ दे...बंधनोंको तोड़ना है तो एक ही साथ तोड़ना, एकेक क्यों तोड़ना? हो जा, तैयार ! बत्तीसोंको भी छोड़ दे, अपन दोनों प्रभु वीरके पास संयम स्वीकार करें.... धन्ना बोले : गोरी! तुझे इतने कौनसे दु:ख लगे? भद्रा तेरी माता, गोभद्र सेठ तेरे पिता, शालिभद्र तेरा माई, बत्तीस-बत्तीस भौजाईयोंकी नणंद और मुझ जैसा भरतार मिलनेके बाद तुझे क्यों रोना आया ? क्या कहुं पतिदेव! एक ही मेरा शालिभद्र भाइजोसंयम न तरस रहा है...रोजकी एक-एक पत्नीका त्याग कर रहा .दु:ख तो मुझे सारी दुनियाका आ लगा है... संजू ! शालिभद्रका अंतर जागृत हो उठा वह शेर तो बन ही चुका था... बस, सीढ़ी उतरनेकी ही मात्र देरी थी। किसीको भी कहे बिना शालिभद्र बिना रूके सीढीयाँ उतरने लगे, माता भद्रा सिर कूटने लगी...बत्तीसों बहुओंमेंसे कितनी तो चक्कर खाते ही वहीं जमीन पर गिर पड़ी... कितनी जोरसे रोने लगी.. कितनी शालिभद्रके साथ सीढ़ियाँ उतर गई... कितनी आर्द्रतासे विनंती करने लगी... ओ सुभद्रा ! यह तो बिल्कुल कायरता ही है। वो क्या प्रयम लेगा? कहना अलग और करना अलग.. छोड़ना है तो क-एक क्यों? एक ही साथ सर्वत्याग करना चाहिए...| परंतु अब पीछे मुड़कर देखे वो दूसरे... सुभद्रा बोली : स्वामिनाथ ! बस... बस... बहुत हो गया। सचमुच कहना आसान है... करना अति कठिन है। आठोंमेंसे एक तो छोड़कर दिखाइये? अ...ध...ध... होजाय इतनी ऐश्वर्य और संपत्तिके इन मालिकोंको सबने भावभरा प्रणाम (अर्पित) किया...यह वंदन दोम दोम साह्यबीओंके स्वामियों को नहीं बल्कि खेलदिली पूर्वकके त्याग को ही था... धन्यने कहा : लो... सुभद्रा, अभी उठा... जा रहा हूँ... सबको राम...राम, एक साथ आठोंका त्याग, बस...? सुभद्रा बोली : सबूर स्वामीनाथ ! मैंने तो मज़ाकमज़ाकमें कहा-इसको क्या पकड़कर रखना ? शायद मेरे कथनसे आपको दुःख लगा हो तो मेरा त्याग करो... पर यह सातों वधूओने कौनसा अपराध किया ? यह सातोंके साथ गृहवास बनाइये। जग-बत्तीसी से गवाई - श्रेयांस और ऋषभदेवकी जोड़ी, नेम और राजुलकी जोड़ी, महावीर और गौतमकी जोडी श्रीपाल और मयणाकी जोडी. इसी ही तरह गवाई... धन्ना और शालिभद्रकी - साला- बहनोईकी जोड़ी...! जय हो..धन्ना-शालिभद्रकी...! जय हो... इस प्रसंगको नज़रोंसे देखने वालेकी...! I धन्य बोला: मुझे व्रततोलेनाहीथा... तुम विध्नरूप बन रही थी...आज ठीक मौका मिल गया। संसारमें स्वार्थक ही सगपण हैं। नारीको मोहकी राजधानी बताई है। इसको विषवेलडीकी उपमा दी गई है। जय हो... उस धन्य धराकी...! जय हो... उस पवित्र समयकी...! संजू ! भींजते शरीरयुक्त लंबी बालोंकी चोटी जोड़कर... धन्नाजी तो चल पड़े... इनका "आतमराम" संपूर्णरूपसे जागृत हो गया था। संजू ! पति वहाँ सती! आठों लीयोंने निश्चय किया कि... हम भी पतिदेवके कदम पर बेलड़ीने इस वैभार-गिरिपर प्रभुवीरके पास सर्वविरति सामायिक उच्चरा... (स्वीकारा...) बहुत दिनोंतक सालाबहनोई के संसार-त्यागकी चर्चा (बाते) मोहल्ले और चौटेमें चलती ही रही। पूरे नगरमें घूमराती रही। 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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