Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 66
________________ इस मंदिर में महामुनि धन्ना- अणगारकी स्वर्ण कमल पर रही चरण पादुकाओंके दर्शन-वंदनसे पूरी रोमांचक घटना राजूके स्मृति पथ पर उभर आयी। महामुनिके पादारविंदको सविधि वंदन करने के बाद वहाँके पवित्र वातावरणकी खुशबुओंको मनानेके (पाने के लिए मित्रबेलडी, उन महामुनि की अनशनभूमिके नजदीक ही सुखासन पर बैठी। ये धन्ना - अणगार कौन ? ऐसे संजूके सवालमें राजूने कहा - संजू ! यह धन्ना-शालिभद्रकी जोड़ी कही जाती है वह नहीं, परंतु इन्हें तो धन्नाकांकदी कहते हैं। जो कांकदी नगर के वासी थे । भद्रा माताके लाड़ले-लाल थे। यह ३२ क्रोड स्वर्ण मोहरोंके मालिक थे। रूप-रूपके अंबार जैसी ३२ रूप- रमणियोंके स्वामी थे। इनके समक्ष सदा ३२ पकवानोंका थाल रखा जाता था। अभी कल ही जिसने ३२ रमणियोंके संग उद्यानमें जाकर क्रीड़ा की थी... पुष्प गुच्छों Jain Education International 60 को आमने-सामने छोड़नेका रंग जमाया था... सुंदर प्रकार खट्टे-मीठे फलोंके रसका आचमन किया था.. चंपकतरु नीचे बैठकर प्यार भरी मीठी-मीठी कहानियोंका वार्ताला हुआ था.... ऐसे भोगनिष्ठ धन्यकुमार आज परमात्मा महावीरखी एकही देशना श्रवणसे विराग-निष्ठ बन गया था। माता भद्रा भद्रासनपर बैठे थे... धन्यकुमारने अपनी विनंती माता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा.... माताजी ! अपने नगरके बाहर उद्यानमें त्रिलोकीनाथ महावीर देव पधारे थे। इनकी देशनामें परिग्रहको पापका बाप हिंसाको पापकी माँ तथा अब्रह्मसे होते अनर्थोंका जो आलेखन किया, वह सचमुच हृदयद्रावक था । यह वाणी, सिर्फ वाणी ही For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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