Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 45
________________ चित्रपट १ चित्रपट ३ चित्रपट २ चित्रपट ४ चित्रपट ५ चित्रपट ६ मंज़ील लम्बी थी... सूर्य तप रहाथा। मित्रयुगल अपनी चालमें झड़पलाकर नगरके दरवाजके नजदीक पहुँच गये। इस दरवाजेकी दो हाथी जितनी ऊंचाई थी। इसके मध्यमें प्रभु महावीरकी ध्यानस्थमुद्राकी प्रतिमा अंकित थी ..... इसके नीचे बड़ा धर्मचक और इसके आसपासमें अद्भुत कारीगरी वाले दो मृग भी कुतरनेमें आये थे........। तदुपरांत इन्द्र-इन्द्राणी आदि अनेक कलाकृतिसे भरपूर स्तंभ वाले दरवाजे खास ध्यान खींच रहे थे। राजा श्रेणिककी सवारीजब भीयहदरवाजोंमों सेपसार होती तबका दृश्य अनोखा बना रहता। मित्रयुगल उसी दरवाजेसे पसार होकर आगे बढ़े।नगरीके बाहर नदीके घाट पर मेलेमें जनताकी भीड़ जमी थी। For 39ate & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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