Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 21
________________ श्रवण कभी भी नही छोड़ते । मालीकी परवाह किये बिना यह देशना सुनने जा रहे थे... | इतनेमें ही सांडकी तरह क्रोधान्ध बने हुए और आकाश की ओर मुद्गर घुमाते हुए अर्जुनमाली सामनेसे दिखाई दिया। सेठ सुदर्शन तो वहाँ खडे रहे... जब तक यह उपसर्ग दर न हो. तब तक चार आहारका प्रत्याख्यान करके श्री नवकार महामंत्र के ध्यानमें लीन हो गये । अर्जुन तो बिल्कुल करीब आ गया । परंतु यह क्या ? मारने के लिए उठाया मुद्गर शस्त्र हाथमें से नीचे गिर गया। वह सुदर्शन श्रावक के तेज-वर्तुलको सहन नहीं कर सका... मुद्गर यक्ष माली के देहसे छूटकर पलायन हो गया...और वह सुदर्शन सेठकी शरणमें जा पहुँचा... | जीसे चलते हुए दोनों मित्र नगरद्वारके। पास आ गये । वहाँ पासमें ही विविध वृक्षोंसे भरी एक वाड़ी इनके देखनेमें AA आयी । इसके बिलकुल मध्यभागमें मुद्गर-यक्षका मंदिर था। मित्र-जोड़ी बाड़ीके आरामासन पर विश्राम हेतु बैठी। राजूने बात प्रारंभ की... संजू ! यह बगीचे का माली "अर्जुन' सदा पुष्प ग्रहण कर यक्षकी पूजा करता था। एक बार ऐसी बात बनी के अर्जुन अपनी रुप-लावण्यसे युक्त पत्नी बंधुमति के साथ यक्षकी आराधना कर रहा था । इतनेमें कोई हलकी जातिके छह पुरुष वहाँ आये और अर्जुनमालीको रस्सीसे बांधा। फिर क्रमश: छह पुरुषने बंधुमति पर अर्जनुमालीके सामने ही अनाचार-सेवन किया। इससे "अर्जुन' अति क्रोधित हुआ । इसने यक्षको प्रार्थना करते हुए कहा कि इतने दिन तक तेरी आराधना-सेवाका यह फल ? जो सचमुच, तू मेरी आराधना से प्रसन्न है तो इस बंधन से तुरंत मुक्त कर । इतनी प्रार्थनाके साथ ही वहाँका अधिष्ठायक यक्ष जागृत हुआ । और इसने तुरंत ही अर्जुनमालीके शरीरमें प्रवेश किया । यक्षका प्रवेश होते ही अर्जुनमालीमें ऐसी शक्ति प्रगट हुई कि स्वयं ही सब बंधनो को क्षणमें ही तोड डाला। वह छह क्षुद्र पूरुष वहाँसे भागने सफल हो इससे पहले ही अर्जनने अपनी स्त्री-सहित सातोंकी हत्या की। दोनों प्रभु वीरकी देशना सुनने गये । देशना सुनते ही अर्जुनमाली वैरागी बन गया । इतना ही नहीं... प्रभुके पास संयम स्वीकार किया और खूनी से मुनि बने । और इकट्ठे किये कुकर्मोको खपानेके लिए राजगृही नगरीके बाहर (अर्जुन मुनि) कायोत्सर्ग ध्यानमें निश्चल खड़े रहे। छह मास तक जिन्होंने मारनेका ही काम किया था... वह अब सामने जाकर मार खाने के लिए तैयार हो गये... | मरनेवाले के स्वजन-वर्ग अर्जुनमालीको धिक्कारने लगे... कोइ इन पर थूकते है... कोई पत्थरों से मार रहे हैं... कोई लातोंसे मार रहे हैं... कोई लकड़ीसे प्रहार करते है... तो कोई अपशब्द सुना रहे हैं... । यह सब समभावसे सहन करते करते मुनिवर तो "मैंने किए हुए मुझे ही भुगतना है" ऐसी शुभ विचार-श्रेणीसे शभध्यानमें चढ़ते श्रेणी प्रारंभ करते संपूर्ण घातीकर्मोंका क्षय करते करते केवलज्ञानकी प्राप्ति की... और मोक्ष भी गये । बस... फिर तो रोजकी सात हत्या (छह पुरुष + एक स्त्री की हत्या) का क्रम हो गया । अर्जुनमाली (के शरीरमें प्रविष्ट यक्ष) जब तक सातकी हत्या न हो, तब तक शांत चित्तसे बैठता नही । राजगृही की जनता 'त्राहिमाम्' 'पुकार उठी...! आज सातकी हत्या हो गई "... ऐसे समाचार जब तक ना मिले, तब तक घरके पाहर निकलने कोई तैयार ही नही होते । राजगृही के मार्गो | दिनमें भी श्मशानवत् शांति फैली रहती। रोते बालकको भी कहते कि "माली" आ रहा है... तो रोता बालक भी प्रबड़ाकर शांत हो जाता । ऐसा कुख्यात बने अर्जुनमालीने छह मास तक प्रतिदिन सात व्यक्ति की हत्या की । आखिर यह स्वर्णिम दिन भी आ गया। प्रभु महावीर राजगृहके बाहर उधानमें समवसरें...। सेठ सुदर्शन चुस्त श्रावक थे । जो भी हो जाय, पर प्रभु वीरकी देशनाका संजू ! "कम्भे शूरा धम्मे शूरा' आखिर तो प्रभु महावीर के चरण-स्पर्श से अनेक बार पवित्र बनी हुई यह भूमि है। पापात्मामेंसे पुण्यात्मा ओर पुण्यात्मामेंसे परमात्मा बनाने की ताकत यह भूमिके रजकणमें है। (दोनों वहाँसे उठकर चलने लगे) संजू सोचने लगा, छह व्यक्तियों का काम और अर्जुनमाली का (अमर्यादित) क्रोध, यह कामक्रोधकी जोड़ीने कैसी भयंकरता सर्जी? राजधानीमें १२६० मनुष्योंके मुर्दे गिर पड़े। 15 Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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