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मित्रयुगल नालंदाकी ओर
शालाकी-गली नालंदा-गलीको स्पर्शती ही रही थी। गलीमें से बाहर निकलनेके साथ ही सुविशाल ना पाडामें राजू और संजूने कदम रखें। जैनोंका वह धाम था। राजुके देहमेंसे एक झनझनाट (हलचल) बा आ गई। इसका हृदय सहसा भर आया। सूर्य मध्याह्मे तप रहा था,
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