Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 34
________________ MNJA JOrbODULOURULE T APPUR इस स्वार्थी संसारसे उठ गया है। मैं तो संयम ग्रहण करूंगा। और सचमुच अमरकुमारने संयम ग्रहण किया। और रात्रिमें स्मशानके पास जाकर कायोत्सर्ग ध्यानमें खड़े रह गये। इस और अमरके माँ-बापको इस बातकी जान मिली। अमरकी माँ पूर्वभवकी वैरी थी। वह रातमें ही अमरकुमार (मुनि) के पास गई. और अमरमुनि को जानसे डाला । अमरमुनि तो समाधिपूर्वक मृत्युका कष्ट सहन करते - करते स्वर्ग सिधारे । अमरमुनिको मारकर उसकी माँ वापस आ रही थी कि तुरंत कोई बाघिन बीच रास्तेमें खड़ी थी। उसने अमरकी माँको अपना शिकार बना लिया वह छट्टी नरक मे गइ । संजू ! उग्र पाप या उग्र पुण्य तुरंत ही फलदायी होते हैं। संजू तो नवकार मंत्रका प्रत्यक्ष प्रभाव और उग्र पापका प्रत्यक्ष कटु प्रभाव (फल) सुनता ही रहा। उसने उसी समय हर १०८ नवकारमंत्र भावपूर्वक गिननेका निश्चय कर लिया। For Private & Personal Use Only doction international www.jainelibraryg

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