Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 23
________________ _ मुनिने कायोत्सर्ग पूर्ण किया । श्रेणिकने दो हाथ जोडकर प्रणाम किया। मुनिने धर्मलाभ दिया। श्रेणिक सहसा ही प्रश्न पूछ बैठे - महात्मन् ! इस भरयौवनमें संसार त्याग? -6 केशका लुंचन ! AMA सुकोमल देहका शोषण ! हुत ही समय पसार हो गया था। सूर्य भी जब अस्ताचल पर्वतकी ब ओर डूब रहा था । नई-नई घटनाऐं और घटनास्थलो में खोया हुआ मित्र- युगल तो भाज अन्न-पानी भी भूल गये थे। श्रम भी ठीक ठीक । रुगा था। नगर-द्वार पसार करनेके पश्चात् दूरसे ही एक रमणीय उद्यानके दर्शन हुए... महाराजाने खास तौरसे तैयार कराया हुआ यह उद्यान था। राज्यसभा का कार्य पूर्ण होते ही श्रेणिक, सवारी सह यहाँ क्रीडा करने आता था। इस उद्यानमें अशोक, चंपक, आम्र आदि अनेक जातिके सुंदर हरियाले वृक्ष थे। जास्वंद, गुलाब, चमेली, मालती आदि अनेक सुगंधित पुष्पोंके मोहनीय छोटे छोटे छोड़ भी थे। पद्मिनीओंका परित्याग ! क्यों ? आपकी देह-कांति कहती है कि आप कोई राजवंशीय लाडले हो... मगर, आप यह बताओ कि आपको कौनसे संसारने धोखा दिया कि आपको ये सुहाना संसार छोडकर इस काटाले पथकी ओर जाने की मजबूरी हुई? आप अतिम उम्र में भी मुनि का वेश धारण कर सकते थे। फिर भी तुरंत इस पथ पर जाने का कारण क्या ? मुनि अनाथीने गंभीर और विरागमधुरी वाणीमें उत्तर। दिया... इस उद्यानके बराबर मध्यमें एक नाजुक व आकर्षक स्तूप था। इसी स्तूपमें कोई महात्मा की पादुका प्रतिष्ठित की हुई थी... | मित्र-युगल, इस पादुका के दर्शनार्थ जा पहुँचे । यह पादारविंद "मुनि-अनाथी'' के थे। राजा श्रेणिकको इस स्थल पर सबसे प्रथम समयक्त्व प्राप्त करानेवाले यही "अनाथी" मनि राजन् ! JIRST जैनधर्मकी सत्य-रूपसे सच्ची-स्पर्शना करानेवाले अनाथीमुनिका राजा श्रेणिक पर महान उपकार था । दोनों मित्रोंने मुनि अनाथीके चरणारविंदोंको सविधि वंदन किया । आजका अंतिम, फिर भी जानने योग्य यह घटनास्थल था। सुहाने लग रहे इस संसारमें तूने जो कल्पना की है, इसे भी अधिक बहुतसी भोग-सामग्री मुझे मिली थी... इंद्राणी जैसी... गुणवंती... शीलवंती... मान-मर्यादावाली.. पत्नी ... लाखों करोडों सोनामहोर...' बांधवकी जोड़ी... अनुकूल माता-पिता... अपरंपार हाथी... घोड़े और रथ.... राजुने बातको प्रारंभिकता दी...। संजू ! राजा श्रेणिकको इस वक्त जैनधर्मका कोई विशेष परिचय नहीं या। एक बार वह जब रसी उद्यानमें क्रीडा करने आये, तब यह उद्यानके एकांतमें एक चंपक-वृक्ष-तले एक ध्यानस्थ नहात्माको कायोत्सर्ग मुद्रामें खडा देखा। महात्माका यौवन-वय था। चेहरा भी राजवंशीय दिख रहा था। वह रूपमें अजोड थे । गुणमें बेजोड़ थे । त्यागी तपस्वी और तेजस्वी महात्माको वह साश्चर्य देखता ही रहा। सबकुछ मिला था... क्या नहीं मिला था यही सवाल है। श्रेणिकने कहा - फिर भी सभी का परित्याग ? अनाथी बोले - हाँ, क्योंकि मैं अनाथ था। मेरा कोई नाथ नहीं था।जिfsstv श्रेणिकने कहा - बस इतनी ही बात ? 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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