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मगधका मालिक दौड़ा...पुणियाकी कुटीयाँ की और...
गधका सम्राट पहुँचा, आंतरसमृद्धिके सम्राट पुणिया के पास, हा... इसके पास रोज खाने के लिए ए समय का भोजन सिर्फ था। इनका आंगन गोबर मिट्टीसे लिपा हुआ था। इसकी कुटीयाँकी छत
देशी नलिये लगाये हुए थे। राजा श्रेणिक ऐसी पुणिया की कुटीया.पर याचकके रूपमें आ पहुँचे। क्योंकि पुणिया तो समता और संतोष सुखका बेताज बादशाह था। उसके पास शम-रसकी आनंदमस्तियां (नरेन और देवोंके पास भी नहीं हो ऐसी) अवर्णनीय थी। श्रेणिकने हाथ लंबा किया। पुणिया... ! एक सामायिक (का फल दे दो। इनके बदलेमें यह मगधका ताज तेरे चरणोमें अर्पण करता हूँ। देखा न... संजू ! कैसी ताकत अध्यात्म-तत्वकी, एक सामायिक की... । एक सामायिक दो और इनकी प्रभावनामें सक्कर या श्रीफल नहीं... परंतु हजारो...
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