Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 39
________________ | : बादशाह इस रुबाई को सुनकर चुप हो गया, लेकिन सरमद उसके क्रोध से बच न पाया। अब के सरमद फिर अपराधी बनाकर लाया गया। अपराध सिर्फ यह था कि वह 'कलमा' आधा पढ़ता है जिसके पाने होते है कि 'कोई खुदा नहीं हैं। इस अपराध का दण्ड उसे फांसी मिला और वह वेदान्त की बातें करता हुआ शहीद हो गया । उसको फांसी दिये जाने में एक कारण यह भी था कि वह दारा का दोस्त था । ' सरमद की तरह न जाने कितने नंगे मुसलमान दरवेश हो गुजरे हैं। बादशाह ने उसे मात्र नंगे रहने के कारण सजा न दो, यह इस बात का द्योतक है कि वह नग्नता को बुरी चीज नहीं समझता था और सचमुच उस समय भारत में हजारों नंगे फकीर थे। ये दरवेश अपने नंगे तन में भारी-भारी जंजीर लपेट कर बड़े लम्बे-लम्बे तीर्थाटन किया करते थे। सारांशतः इस्लाम मजहब में दिगम्बरत्व साधु पद का चिह्न रहा है और उसको अमली शक्ल भी हजारों मुसलमानों ने दो है और चूँकि हजरत मुहम्मद किसी नये सिद्धान्त के प्रचार का दावा नहीं करते, इसलिये कहना होगा कि ऋषभाचल से प्रकट हुई दिगम्बरत्व - गंगा की एक धारा को इस्लाम के सूफी दरवेशों ने भी अपना लिया था। १. जैम., पृ. ४। 3.GG, Vol. XX p. 159. "There is no Ciod" said Sarmad omitting but, Allah and Muhammad is His apostle." 3. "Among the vast number and endless variety of Fakires or Dervishes.....some carried a club like to Flercules, others had a dry & rough tiger-skin thrown over their shoulders....Several of these Fakires take long pilgrimages, not only naked, but laden with heavy iron chain such as are put about the legs of clephants."- Bernicr. p.317 दिगम्बरत्व और दिगम्बर पुनि (36)

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