Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 143
________________ श्री वक्रग्रीव आदि दिगम्बराचार्य - दिगम्बराचार्य श्री वक्रग्रीव के विषय में उपयुक्त श्रवणबेलगोलीय शिलालेख बताता है कि वे छः मास तक "अथ" शब्द का अर्थ करने वाले थे। श्री पात्रकेसरी के गरु विलक्षण सिद्धान्त के खण्डनकर्ता थे। श्री वद्धदेव चूडामणि काव्य के कर्ता कवि दण्डी द्वारा स्तुत्य थे। स्वामी महेश्वर ब्रह्मराक्षसों द्वारा पूजित थे। अकलंक स्वामी बौद्धों के विजेता थे। उन्होंने साहस तंग नरेश के सन्मुख हिमशीतल नरेश की सभा में उन्हें परास्त किया था। विमलचन्द्र पुनि ने शैव पाशुपतादिवादियों के लिये “शत्रभयंकर के भवनद्वार पर नोटिस लगा दिया था, पर वादिमल्ल ने कृष्णराज के समक्ष वाद किया था। मुनि वादिराज ने चालुक्यचक्रेश्वर जयसिंह के कटक में कीर्ति प्राप्त की थी। आचार्य शान्तिदेव होयसाल नरेश विनयादित्य द्वारा पूज्य थे। चतुर्मुखदेव मुनिराज ने पाण्डय नरेश से “स्वामी" की उपाधि प्राप्त की थी, और आहषमल्लनरेश ने उन्हें "चतुर्मुखदेव रूपी सम्मानित नाप दिया था। गर्ज यह कि यह शिलालेख दिगम्बर मुनियों के गौरव गाथा से समन्वित है।' दिगम्बराचार्य श्री गोपनन्दि - शक सं. १०२२ (नं. ५५) के शिलालेख से जाना जाता है कि मलसंघ देशीयगण आचार्य गोपनन्दि बहप्रसिद्ध हये थे। वह बड़े पारी कवि और तर्क प्रवीण थे। उन्होंने जैन धर्म की वैसी हो उन्नति की थी जैसी गंगनरेशों के समय हुई थी। उन्होंने धूर्जटिकी जिह्वा को भी स्थगित कर दिया था। देश देशान्तर में बिहार करके उन्होंने सांख्य, बौद्ध, चार्वाक, जैमिनि, लोकायत आदि विपक्षी मतों को हीनप्रभ बना दिया था। वह परमतप के निधान प्राणीमात्र के हितैषी और जैन शासन के सकल कलापूर्ण चन्द्रमा थे।' होयसल नरेश एऐयंग उनके शिष्य थे, जिन्होंने कई ग्राम उन्हें भेंट किये थे।' धारानरेश पूजित प्रभाचन्द्र - इसी शिलालेख में मुनि प्रभाचन्द्र जी के विषय में लिखा है कि वे एक सफल वादी थे और धारानरेश भोज ने अपना शीश उनके पवित्र चरणों में रखा था।" श्री दामनन्दि - श्री दामनन्दि पनि को भी इस शिलालेख में एक महावादी प्रकट किया गया है जिन्होंने बौद्ध, नैयायिक और वैष्णवों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था। वादी, महावादी "विष्णु भट्ट" को परास्त करने के कारण वे "महावादि विष्णुभट्टघरट्ट" कहे गये हैं।" १. जैशिसं., पृ. १०१-११४। २. जैशिसं., पृ. ११७ “परमतपो निधाने, वसुधैककुटुम्बजैन शासनाम्बर परिपूर्णचन्द्र सकलागम तत्व पदार्थ शास्त्र विस्तर वचनाभिरामगुण रत्न विभूषण गोपणन्दिः ।" ३. जैशिसं., पृ. ३९५। ४, जैशिसं., पृ. ११८॥ ५. जैशिसं., पृ. ११८॥ दिगम्मरत्व और दिगम्बर मुम (140)

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