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और मुहम्मद गौरी (११७५)ने अनेक बार भारत पर आक्रमण किये किन्तु वह यहाँ उहरे नही। ठहरे तो यहाँ पर “लाम खानदान" के सल्तान और उन्हीं से भारत पर मुसलमानी बादशाहत की शुरूआत हुई समझना चाहिए। उन्होंने सन् १२०६ से १२९० ई. तक राज्य किया और उनके बाद खिलजी, तुगलक और लोदी वंशों के बादशाहों ने सन् १२९० से १.२६ ई. तक यहाँ शासन किया।
मुहम्म्द गौरी और दिगम्बर मुनि - इन बादशाहों के जमाने में दिगम्बर मुनिगण निर्बाध धर्मप्रचार करते रहे थे, यह बात जैन एवं अन्य श्रोतों से स्पष्ट है। गुलाम बादशाहों के पहले ही दिगम्बर मुनि, सुल्तान महमूद का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर चुके थे। सुल्तान मुहम्पद गौरी के सम्बन्ध में तो यह कहा जाता है कि उसकी बेगम ने दिगम्बर आचार्य के दर्शन किये थे। इससे स्पष्ट है कि उस समय दिगम्बर मुनि इतने प्रभावशाली थे कि वे विदेशी आक्रमणकारियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में समर्थ थे।
गुलाम बादशाहत में दिगम्बर मनि - गलाम बादशहत के जमाने में भी दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व मिलता है। पूल संघ सेनगण में उस समय श्री दुर्लभसेनाचार्य, श्री धरसेनाचार्य, श्रीषण, श्री लक्ष्मीसेन, श्री सोममेन, प्रभृत मुनिपुंगव शोभा को पा रहे थे। श्री दर्लभमनाचार्य ने अंग, कलिंग, कदमीर, नेपाल, द्रविड़, गौड़, केरल , तैलंग, उड़, आदि देशों में विहार करके विधर्मी आचार्यों को हतप्रभ किया था। इसी समय में श्रीकाष्ठासंघ में निश्रेष्ठ विजयचन्द्र तथा पनि यदाः कीर्ति, अभय कोति, महासेन कुन्दकीर्ति, त्रिभुवनचन्द्र, गपसेन आदि हुये प्रतीत होते हैं। "ग्वालियर में श्री अकलंकचंद्र जी दिगम्बस्वष में म. १२५७ तक रहे
१.(Oxford pp. 129 1310.
२. "अलकेश्वरपुरादभरवरच्छनगरे राजाधिराजपरमेश्वर यवन रायशिरोमणिमुहम्मद बादशाह सुरत्राण
समस्यापूर्णादखिल दृष्टिपातेनाष्टादश वर्षप्रायप्राप्तदेवलोकश्रीश्रुतवीरस्वामिनाम।" ।
अर्थात -"अलकेश्वरपुर के भरोचनगर में राजेश्वर स्वामी यवन राजाओं में श्रेष्ठ मुहम्म्द बादशाह के बाण समस्या की पूर्ति से तथा दृष्ट होने से १८ वर्ष की अवस्था में स्वर्ग गये हुए श्री श्रुतवीर स्वामी हुए।
__जैसिभा, १ कि २-३पृ. ३५ ३. IA.Vol. XXI.p.361...wife of Muhamrnad Ghri desired to see the chics of the Digambaras.
४. जैसिभा., भा. १, कि, २-३, पृ.३४। ५. bid.किरण ४, पृ. १०।।
६. वृजेश. पू. १०। दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि