Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 167
________________ दफा ३१ पुलिस एक कील में पुलिस का आम गस्ती, सड़कों, गलियों, पर आन ज्ञान के सब ही स्थानों में शान्ति स्थिर रखने का अधिकार है। बनारस में इस अधिकार के अनुसार एक हुक्म को किया गया था कि खाम सम्पदाय के लोग यात्रा वाली (पंडों) को, जो इस नगर की यात्रा के लिये लोगों का पथ-प्रदर्शन करते हैं, रेलवे स्टेशन पर जाने की मनाई है। इस मुकदमे में हाईकोर्ट इलाहाबाद के योग्य जज महोदय ने तजवीज किया कि किसी स्थान पर शान्ति स्थिर रखने के अधिकारों के बल पर किसी खास सम्प्रदाय के लोगों को किसी खास जगह पर जाने की आम मुमानियत करने का सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस को अधिकार न था। इस तजवीज़ के कारण वहीं थे जो बमुकदमा सरकार बनाम किशनलाल में दिये गये हैं। LL.R. Allahabad Vol. 39, P. 131 ) शान्ति स्थिर रखने का भाव आदमियों को घरों में बन्द करने का नहीं हैं। यही विज्ञप्तियाँ दिगम्बर जैन साधुओं से भी सम्बन्ध रखती हैं। वह चाहे अकेले निकलें और चाहे जुलूस की शक्ल में, सरकारी अफसरों का कर्तव्य है कि उनके इस हक को न रोकें। दिगम्बर जैन साधुगण सारे ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों में स्वतन्त्रता से बराबर घूमते रहे हैं, कहीं कोई रोक-टोक नहीं हुई और न इस सम्बन्ध में किसी को कोई शिकायत हुई। अतएव सरकारी अफसरों का तो यह मुख्य कर्तव्य है कि वे दिगम्बर मुनियों को अपना धर्म पालन करने में सहायता पहुंचाये। गतकाल में जितने भी शासक यहाँ हुये उन्होंने यही किया इसलिये अब इसके विरुद्ध ब्रिटिश शासक कोई भी बर्ताव करने के अधिकारी नहीं हैं। उनको तो जैनों को अपना धर्म निर्बाध पालने देना ही उचित है। १. NJ, pp. 19-23. (164) दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि

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