Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 168
________________ [२७] दिगम्बरत्व और आधुनिक विद्वान् * मनुष्य मात्र की आदर्श स्थिति दिगम्बर ही है। मुझे स्वयं नग्नावस्था प्रिय - महात्मा गाँधी संसार के सर्वश्रेष्ठ पुरुष दिगम्बरत्व को मनुष्य के लिये प्राकृत, सुसंगत और आवश्यक समझते हैं। भारत में दिगम्बरत्व का महत्व प्राचीन काल से माना जाता रहा है। किन्तु अब आधुनिक सभ्यता की लीलास्थली यूरोप में भी उसको महत्व दिया जा रहा है। प्राचीन यूनानवासियों की तरह जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैण्ड आदि देशों के मनुष्य नंगे रहने में स्वास्थ्य और सदाचार की वृद्धि हुई मानते हैं। वस्तुतः बात भी यही है । दिगम्बरत्व आदि स्वास्थ्य और सदाचार का पोषक न हो तो सर्वज्ञ जैसे धर्म प्रवर्तक मोक्ष- मार्ग के साधनरूप उसका उपदेश हो क्यों देते ? मोक्ष को पाने के लिये अन्य आवश्यकताओं के साथ नंगा तन और नंगा मन होना भी एक मुख्य आवश्यकता हैं। श्रेष्ठ शरीर ही धर्म साधन का मूल है और सदाचार धर्म की जान है तथा यह स्पष्ट है कि दिगम्बरत्व श्रेष्ठ स्वस्थ शरीर और उत्कृष्ट मदाचार का उत्पादक है। अब भला कहिये वह परमधर्म की आराधना के लिये क्यों न आवश्यक माना जाय ? आधुनिक सभ्य संसार आज इस सत्य को जान गया है और वह उसका मनसा वाचा कर्मणा कायल है। यूरोप में आज सैकड़ों सभायें दिगम्बरत्व के प्रचार के लिये खुली हुई हैं। जिनके हजारों सदस्य दिगम्बर वेश में रहने का अभ्यास करते हैं। बेडल्स स्कूल, पीटर्स फील्ड (हैम्पशायर ) में बैरिस्टर, डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षक आदि उच्च शिक्षा प्राप्त महानुभाव दिगम्बर वेष में रहना अपने लिये हितकर समझते हैं। इस स्कूल के मंत्री श्री बफड (Mr. N.F. Barford) कहते हैं कि Next year, as I say, we shall be even more advanced, and in time people will get quite used to the idea of wearing no clothes at all in the open and will realise its enormous value to health, (Amrita Bazar Patrika, 8-8-31) - भाव यही है कि एक साल के अन्दर नंगे रहने की प्रथा विशेष उन्नत हो जायेगी और समयानुसार लोगों को खुलेआम कपड़े पहनने की आवश्यकता नहीं रहेगी। उन्हें नंगे रहने से स्वास्थ्य के लिये जो अमिट लाभ होगा वह तब ज्ञात होगा। इस प्रकार संसार में जो सभ्यता पुज रही है उसकी यह स्पष्ट घोषणा है कि “ मनुष्य जाति को स्वस्थ रखने के लिये वस्त्रों को तिलांजलि देनी पड़ेगी। नग्नता रोगियों के लिये ही केवल एक महान् औषधि नहीं है, बल्कि स्वस्थ जीवों के लिए दिगम्यत्व और दिगम्बर मुनि (165)

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