Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 154
________________ में बौद्ध व अन्यों को बाद में हराया था। यह बात उक्त शिलालेख में है। यह उल्लेख बादशाह अलाउद्दीन के सम्बन्ध में हुआ प्रतिभाषित होता है। ' सारांशतः यह कहा जा सकता है कि बादशाह अलाउद्दीन के निकट दिगम्बर पुनियों को विशेष सम्मान प्राप्त हुआ था। अलाउद्दीन दिल्ली के श्री पूर्णचन्द्र दिगम्बर जैन श्रावक की भी इज्जत करता था और उसने श्वेताम्बरचार्य श्री रामचन्द्रसूरि को कई भेटें अपर्ण की थीं। सच बात तो यह है कि अलाउद्दीन के निकट धर्म का महत्व न कुछ था। उसे अपने राज्य का ही एकमात्र ध्यान था उसके सामने वह "शरीअत" को भी कुछ न समझता था। एक बार उसने नव मुस्लिमों को भी तोपदम कर दिया । "हिन्दुओं के प्रति वह ज्यादा उदार नहीं था और जैन लेखकों ने उसे " खूनी" लिखा है। किन्तु अलाउद्दीन में "मनुष्यत्व" था। उसी के बल पर “वह अपनी प्रजा को प्रसन्न रख सका था और विद्वानों का सम्मान करने में सफल हुआ था। ५ तत्कालीन अन्य दिगम्बर मुनिगण सं. १४६२ में ग्वालियर में महामुनि श्री गुणकीर्ति जी प्रसिद्ध थे। 'पेदपाद देश में सं. १५३६ में मुनि श्री रामसेन जी के प्रशिष्य मुनि सोमकीर्ति जो विद्यमान थे और उन्होंने “यशोधर चरित" को रचना की थी। " श्री “भद्रबाहु चरित" के कर्ता मुनि रत्नन्दि भी इसी समय हुये थे । वस्तुतः उस समय अनेक मुनिजन अपने दिगम्बर वेष में इस देश में विचर रहे थे। - - - १. मजैस्मा, पृ. ३२२ " सुल्तान - शब्द को जैनाचार्यों ने सूरित्राण लिखकर बादशाहों को मुनिरक्षक प्रकट किया है। २. जैहि. भा. १५, पृ. १३२ । " ३. जैघ., पृ. ६८ । Y. Hc (Allauddin) was by nature cruel and implacable. and his only care, was the welfare of his kingdom. Na consideration for religion (Islam). .... ever troubled him. He disregarded the provisions of the Law He now gave commands that the race of "New-Muslims. Should be destroyed..... - Tarikh-i-Firozshahi - Elliot III. p. 25 5. सुल्तान अलाउद्दीन ने शराब की बिक्री रुकवा दी थी। नाज, कपड़ा आदि बेहद सस्ते थे। उसके राज में राजभक्ति की बाहुल्यता थी। विद्यान काफी हुए थे। (Without the partonange of the Sultan many learned and great men flourished). - Elliot, JJI, 206 ६. जैहि. भा. १५ पृ. २२५ ७. "नदीतटाख्यगच्छे वंशे श्रीरामसेनदेवस्य जातो गुणार्णवैंक श्रीमांश्च भीमसेवेति । निर्मितं तस्य शिष्येण श्रीयशोधर सज्ञिक श्री सोमकीर्ति मुनिनानिशोदयाधीपतांबुधावर्षे षट् विशंशख्येतिथिपरिगणनायुक्तं संवत्सरेति पंचम्यां पौषकृष्णदिनकर दिवसे चोत्तरास्पट्ट चंद्रे इत्यादि । " दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुर्ति (151)

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