Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 158
________________ दिगम्बर पुनियों ने प्रभावित कर लिया था, यहाँ तक कि औरंगजेब ने भी उनका सम्मान किया था। उस समय के किन्हीं मुनि पहाराजों का उल्लेख इस प्रकार है - तत्कालीन दिगम्बर मुनि - दिगम्बर मुनि श्री सकलचन्द्र जी सं. १६६७ में विद्यमान थे। उनके एक शिष्य ने "भक्तामर कथा" की रचना की थी।' सं. १६८० का लिखा हुआ एक गटका दिगम्बर जैन पंचायती बड़ा पन्दिर (मैनपुरी) के शास्त्र भण्डार में विराजमान है। उसमें श्री दिगम्बर मुनि महेन्द्रसागर का उल्लेख उस समय में मिलता है। संवत १७१९ में अकबराबाद में मुनि श्री वैराग्यसेन ने "आठकर्म की १४८ प्रकृतियों का विचार" चर्चा ग्रंथ लिखा था। सं. १७८३ में गुरु देवेन्द्रकीर्ति का अस्तित्व दूंढारिदेश में मिलता है। वहाँ पर दिगम्बर मुनियों का प्राचीन आवास था। सं. १७५७ में कुण्डलपुर में पुनि श्री गणसागर और यश-कीर्ति थे। उनके शिष्य. ने महाराजा छत्रसाल की विशेष सहायता की थी। कवि लालमणि ने औरंगजेन्न के राज्य में “अजितपुराण" को रचना की थी। उससे काष्ठासंघ में श्री धर्मसेन. भावसेन, सहस्रकीर्ति, गुणकाति, यश-कीति. जिनचन्द्र, श्रुतकीर्ति आदि दिगम्बर मुनियों का पता चलता है। सं. १७९९ में कवि खुशालदास जी ने एक मुनि पहेन्द्रकीर्ति जी का उल्लेख किया है। मुनि धर्मचन्द्र, मुनि विश्वसेन, मुनि १. SSU. Ft. LL.p. 132 जैन कवियों ने औरंगजेब की प्रशंसा ही की है - "औरंगसाह वलीको राज, पायो कविजन परम समाज | चक्रवर्तिसम जगमें भयो, फेरत आदि उदधि लों गयीं।। जा के राज परम सुख पाय, करी कथा हम जिन गुन गाय।" - कवि विनोदीलाल २. जैप्र.,पृ. १४३। ३. “गुरु मुनि माहिदसेनि नमिजी, भनत भगवतीदासु।" - वीर जिनेन्द्र गौत. "मुनि माहेरन्द्रसेनि गुरु तिह जुग चरन पसाइ।" - ढमालु राजमती -नेमिसुर "सुणि माहेन्द्रसेन इह निरिस प्रणामा तासो। धानि कपस्थलि नी कर भनत भगौती दासो।।" - स्ज्ञानी दाल ४. “सवत् १७१९ वर्षे फाल्गुण सुदि १३ सोमे लिखित मुनि श्री वैरागयसागरेण।" ५. देसढूढाहड़जाणूसार मूलसडू भविजान सुर्ग सिवकार वषान्यूम्। आगे भये रिषीस गुणाकर तिनि इह ठान्यूम्।। कुन्दकुन्द मुनिराइ जिहा धर्म जामाहि; कतकिलकाल वितीत भए मुनिवत अभिकाडी। देवेन्द्रकीर्ति आब। चितधारि साहो विर्ष। लक्ष्मीगुदास पण्डित तहाँ विनुसगुरु अति सैरः ।। सतरासै तियासिये पोस सुकुल तिथिजानि।" - पापुराण भाषा ६. "तस्यान्वये संजातो ज्ञानवाल गुणसागरः । भवस्वी संघ सपूज्यों यशः कीर्तिमहानुनिः।।" -दिबैडा., पृ. २५९ ७, जैहिं, , १२-१९४ "श्रीमच्छीकाप्ठासंघे मुणिगणगणनात् दिगवस्त्रयुष्टे।।" ८, “भट्टारक पद सौंफ जास मुनि महेन्द्रकीर्ति पट तास।" - उत्तरपुराण भाषा. दिगम्बात्य और दिगम्बर मुनि (155)

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