Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 160
________________ आदर-मत्कार किया था। वकालीन हिन्दू कवि मन्दरदास जी भी अपने " ग" गध में इनका खमिना गाते है ' - ___ “केचित् कर्मग्थापहि जैना, केश ल चाइ कहिं अति फै।" कैशलुंचन क्रिया दिगम्बर पुनियों का एक खास मूलगुण है, यह लिया ही जा चुका है। इससे तथा सं. १८७० में हुये कवि लालजीत जो के निम्न उल्लग्न म तत्कालीन दिगम्बर मुनियों का अपने मूलगुणों को पालन करने में पूर्णतः द वन रहना प्रकट है - "धारे दिगम्बर रूप भूप सब पद को परसें; हिये परप वैशाय मोक्षमारग को दरसें। जे भवि सेवें चरन तिन्हें सम्यक दरसाईः करै आप कल्याण सुवारहभावन भाव।। पच महाव्रत धरें बरें शिवसुन्दर नारी; निज अन भौ रसलीन परम-पद के सुविचारी। दशलक्षण निजधर्म गहै रत्नत्रयधार्ग।। ऐसे श्री पनिगज चान पर जग-बलिहारी।।" १. फाह्यान भूमिका । दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि (157)

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