Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 161
________________ ब्रिटिश शासनकाल में दिगम्बर मुनि FL "All shall alike enjoy the equal and impartial protection of the Law, and we do strictly charge and enjoin all those who may be in authority under us that they abstain from all interferance with the religious belief or worship of any of our subjects un pain of our highest displeasure." - Queen Vatorial [२६] महारानी विक्टोरिया ने अपनी १ नवम्बर सन् १८५८ की घोषणा में यह बात स्पष्ट कर दी है कि ब्रिटिश शासन की छत्रछाया में प्रत्येक जाति और धर्म के अनुयायी को अपनी परम्परागत धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को पालन करने में पूर्ण स्वाधीनता होगी और कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी के धर्म में हस्तक्षेप न करेगा। इस अवस्था में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत दिगम्बर मुनियों को अपना धर्मपालन करना सुगम - साध्य होना चाहिये और वह प्रायः सुगम रहा है। २ गत ब्रिटिश शासनकाल में हमें कई एक दिगम्बर मुनियों के होने का पता चलता है। सं. १८७० में ढाका शहर में श्री नरसिंह नामक मुनि के अस्तित्व का पता चलता है। इटावा के आस-पास इसी समय मुनि विनयसागर व उनके शिष्यगण धर्म प्रचार कर रहे थे। लगभग पचास वर्ष पहले लेखक के पूर्वजों ने एक दिगम्बर मुनि महाराज के दर्शन जयपुर रियासत के फागी नामक स्थान पर किये थे। वह मुनिराज वहाँ पर दक्षिण की ओर से विहार करते हुये आये थे । दक्षिण भारत की गिरि-गुफाओं में अनेक दिगम्बर मुनि इस समय में ज्ञान-ध्यानरत रहे हैं। उन सबका ठीक-ठीक पता पा लेना कठिन है। उनमें से कतिपय जो प्रसिद्धि में आ गये उन्हीं के नाम आदि प्रकट हैं। उनमें श्री चन्द्रकीर्ति जी महाराज का नाम उल्लेखनीय है। वह संभवतः गुरमंड्या के निवासी थे और जैनवद्री में तपस्या करते थे। वह एक महान तपस्वी कहे गये हैं। उनके विषय में विशेष परिचय ज्ञात नहीं है। किन्तु उत्तर भारत के लोगों में साम्प्रत दिगम्बर मुनि श्री चन्द्रसागर जी का ही नाम पहले पहल मिलता है। वह फलटन (सतारा ) निवासी हूमड़जातीय पद्मसी नामक श्रावक थे। सं. १९६९ में उन्होंने कुरुन्दवाड़ग्राम (शोलापुर) में दिगम्बर मुनि (158) १. Royal Proclamation of Ist Nov. 1858. २. "संवत् अष्टादश शतक व सतर बरस प्रमाण ढाका सहर सुहामणा, देश बग के माँहि । जैन धर्मधारक जिहाँ श्रावक अधिक सुहाहिं । तासु शिष्य विनय विबुध हर्पचंद गुणवंत | मुनि नरसिंह विनेय विधि पुस्तक एह लिखंत ।। " ३. दिजै. वर्ष ९, अंक १. पृ. २३० - मैनपुरी दि. जैन बड़ा मंदिर का एक गुटका । दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि

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